राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क

सिर्फ डेढ़ साल की उम्र में अनाथालय छोड़ा, बचपन में ही मां ने साथ छोड़ दिया – जानिए Jyoti Malhotra की संघर्ष भरी कहानी

कहते हैं कि किसी के संघर्ष को जब शब्दों में पिरोया जाता है, तो वो कहानी नहीं, मिसाल बन जाती है। Jyoti Malhotra की ज़िंदगी कुछ ऐसी ही है — एक ऐसा जीवन जिसने मुसीबतों को सीढ़ी बनाया, और खुद को वहां पहुंचाया जहां बहुत से लोग सोच भी नहीं पाते।

जब मां ने छोड़ दिया साथ

Jyoti Malhotra का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। वे मुश्किल से कुछ महीने की थीं जब उनकी मां ने उन्हें छोड़ दिया। मां की ममता से वंचित Jyoti को अनाथालय में भेज दिया गया। उस उम्र में जहां एक बच्चा मां की गोद से बाहर गिरते ही रो उठता है, Jyoti को पूरी तरह इस दुनिया से ही अलग-थलग कर दिया गया।

डेढ़ साल की उम्र में छोड़ा अनाथालय

Jyoti को एक स्थानीय अनाथालय में भेजा गया, लेकिन उनका वहां भी ज्यादा समय तक टिकना नहीं लिखा था। सिर्फ डेढ़ साल की उम्र में उन्होंने वह जगह भी छोड़ दी। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने उन्हें देखभाल और संरक्षण के लिए एक विशेष केंद्र में स्थानांतरित करवाया। पर असल में, यही उनकी ज़िंदगी का वह मोड़ था जहां से संघर्ष की असली कहानी शुरू हुई।

बचपन संघर्षों की छांव में बीता

न कोई पारिवारिक सहारा, न स्थायी घर — Jyoti ने अपने जीवन के शुरुआती वर्ष समाज की उपेक्षा और अपनों की बेरुखी में गुजारे। पर इसी माहौल में उन्होंने खुद को हारने नहीं दिया।
सरकारी स्कूल से पढ़ाई शुरू की, और हर साल की कठिनाइयों के बावजूद, वे पढ़ाई में अव्वल रहीं। शिक्षक भी उनकी मेहनत और संकल्प के कायल थे।

जब हौसले ने उड़ान भरी

बचपन में जहां लोग सहारा ढूंढते हैं, Jyoti ने खुद को ही सहारा बना लिया। किशोरावस्था तक आते-आते उन्होंने यह तय कर लिया था कि वे सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि उन सैकड़ों बच्चों के लिए कुछ करेंगी, जो ऐसे ही हालात से गुजर रहे हैं।

Jyoti ने पढ़ाई के साथ-साथ सोशल वर्क में रुचि ली, और एक NGO से जुड़कर उन बच्चों के लिए काम करना शुरू किया, जो अनाथालयों में पल रहे हैं या जिन्हें समाज ने किनारे कर दिया है।

आज की Jyoti: हिम्मत और उम्मीद की मिसाल

आज Jyoti Malhotra एक शिक्षिका, सामाजिक कार्यकर्ता और सशक्त महिला की पहचान बन चुकी हैं। वे न केवल आत्मनिर्भर हैं, बल्कि दूसरों को भी अपने पैरों पर खड़ा होने की प्रेरणा दे रही हैं।

उनकी कहानी यह दिखाती है कि हालात कितने भी कठिन हों, अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो कोई भी व्यक्ति अपनी किस्मत खुद लिख सकता है।

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