राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज नेटवर्क। नयी दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने 2021 के पश्चिम बंगाल हिंसा मामले के छह आरोपियों की जमानत को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं लोकतंत्र की जड़ों पर हमला हैं। दरअसल, सभी आरोपी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कार्यकर्ता हैं और उन पर 2021 के पश्चिम बंगाल हिंसा के दौरान एक हिंदू परिवार पर हमला करने का आरोप है। इन सभी छह आरोपियों को कलकत्ता हाईकोर्ट ने जमानत दी थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मामले में सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट के जमानत के आदेश को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सभी आरोपियों की जमानत रद्द करते हुए उन्हें दो सप्ताह के अंदर निचली अदालत के सामने सरेंडर करने का आदेश दिया। साथ ही सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में निचली अदालत में चल रही सुनवाई में तेजी लाने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत को छह महीने के भीतर सुनवाई पूरी करने का निर्देश भी दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि उसे यह पता चला है कि लगभग 40-50 हमलावरों ने पीड़ित के घर में तोड़फोड़ और लूटपाट की। इतना ही नहीं, उसकी पत्नी को बालों से खींचा, जबरन उसके कपड़े उतारे और फिर उसका यौन शोषण किया। उसने खुद पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगाने की धमकी दी और उसके बाद वह वहां से भागने में सफल रही थी। सर्वोच्च अदालत ने आरोपियों की जमानत रद्द करते हुए तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) कार्यकर्ताओं की कड़ी आलोचना भी की। कोर्ट ने कहा कि ऐसी घटनाएं ‘लोकतंत्र की जड़ों पर हमला’ हैं। आरोपियों के खिलाफ आरोप इतने गंभीर हैं कि उनका समाज पर ‘प्रतिकूल प्रभाव’ पड़ता है और ‘अदालत की अंतरात्मा को झकझोरता है’। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपियों को जमानत पर रिहा करने से समाज में ‘भय और आतंक’ पैदा होने की संभावना है। जमानत के दौरान आरोपी फरार हो सकते हैं या सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं और मुकदमे को प्रभावित भी कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में पुलिस अधिकारी ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया था और पीड़ित परिवार को सुरक्षा देने के बजाय गांव छोड़ने के लिए कहा था। स्थानीय पुलिस का यह रवैया पीड़ित की इस आशंका को बल देता है कि आरोपी का इलाके और यहां तक कि पुलिस पर भी प्रभाव है।

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