राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क लखनऊ

नई दिल्ली | भारत की ब्रह्मोस मिसाइल ने नूर खान (चकलाला) में एयरबेस सहित पाकिस्तान के कई प्रमुख सैन्य प्रतिष्ठानों और एयरबेसों को निशाना बनाया। सूत्रों का कहना है कि भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल का इस्तेमाल तब किया, जब पाकिस्तान ने अपनी फतह 11 बैलिस्टिक मिसाइलों से नई दिल्ली को निशाना बनाने की कोशिश की। हालांकि, फतह को हरियाणा के सिरसा के पास एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने नाकाम कर दिया था।
सूत्रों ने बताया कि क्रूज मिसाइल का सामरिक उपयोग पाकिस्तान की परमाणु ताकत की छवि को कमजोर करने के लिए किया गया था। यह एक ऐसा मोड़ था, जिसने पाकिस्तान को झकझोर कर रख दिया और सेना प्रमुख असीम मुनीर सहित सैन्य नेतृत्व को कदम पीछे खींचने पर मजबूर किया। एक दिन पहले भारत ने लाहौर में वायु रक्षा प्रणाली पर हमला किया था। इससे पाकिस्तान की कमजोरियां उजागर हो गई थीं कि भारत की मिसाइलें उसके क्षेत्र में बहुत अंदर तक सटीकता से लक्ष्य को भेद सकती हैं। ब्रह्मोस समेत भारत की मिसाइलों ने रफीकी, मुरीदके, नूर खान, रहीम यार खान, सुक्कुर, चुनियन, स्कार्दू, भोलारी, जैकबाबाद में भारी नुकसान पहुंचाया।
ब्रह्मोस दो-चरणीय मिसाइल है। इसे रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) और रूस के एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया ने संयुक्त रूप से विकसित किया है। इसका नाम दो नदियों भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा से मिलाकर रखा गया है। यह भारत-रूस साझेदारी का प्रतीक भी है। मिसाइल ठोस ईंधन बूस्टर के साथ लॉन्च होती है जो उड़ान भरने के बाद अलग हो जाता है। इसके बाद तरल ईंधन से चलने वाला रैमजेट इंजन इसे मैक 3 की गति से आगे बढ़ाता है।

यह 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ान भर सकती है और जमीन से 10 मीटर की ऊंचाई पर भी हमला कर सकती है। इसे दागो और भूल जाओ के सिद्धांत पर डिजाइन किया गया है। एक बार लॉन्च होने के बाद इसे किसी और मार्गदर्शन की जरूरत नहीं होती। मिसाइल का कम रडार सिग्नेचर और उच्च गतिज ऊर्जा के कारण इसे रोकना बेहद कठिन हो जाता है।

ब्रह्मोस मिसाइलों की मानक मारक क्षमता 290 किलोमीटर है। हालांकि, हाल ही में 450 किलोमीटर से अधिक और 800 किलोमीटर तक की विस्तारित मारक क्षमता वाले संस्करणों का सफलतापूर्वक परीक्षण भी किया गया है। भविष्य के वेरिएंट का लक्ष्य 1,500 किलोमीटर दूर तक के लक्ष्यों पर हमला करना है।

ब्रह्मोस का पहला परीक्षण 12 जून, 2001 हुआ था। भारतीय नौसेना ने 2005 में आईएनएस राजपूत पर अपना पहली ब्रह्मोस प्रणाली शामिल की थी। भारतीय सेना ने 2007 में अपनी रेजिमेंट के साथ इसे शामिल किया और बाद में वायुसेना ने सुखोई-30एमकेआई विमान से हवाई-लॉन्च वाले संस्करण को शामिल किया। 2025 तक इसके दो संस्करण सेवा में हैं।

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