राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क लखनऊ
भारत द्वारा हाल ही में किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने एक बार फिर देश को सैन्य कार्रवाई और उसके असर पर सोचने को मजबूर कर दिया है। आतंकी हमलों के जवाब में भारतीय सेना की यह सख्त प्रतिक्रिया भले ही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से जरूरी रही हो, लेकिन इसका आर्थिक और कूटनीतिक असर भी उतना ही महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर यह सैन्य तनाव लंबे समय तक चला, तो भारत को इसका खर्च कारगिल युद्ध से लगभग 3.6 गुना अधिक उठाना पड़ सकता है।
जहां एक ओर भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान को उसके आतंकी मंसूबों का करारा जवाब दिया, वहीं देश के भीतर राजनीतिक हलचल भी तेज हो गई। भारत में विपक्षी दलों ने अमेरिका द्वारा सीजफायर की घोषणा पर सवाल उठाए और इसे एक तरह की विदेशी ‘मध्यस्थता’ के रूप में देखा। कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और 1971 के युद्ध की याद दिलाई, जब भारत ने अपने बलबूते पाकिस्तान को पराजित कर बांग्लादेश का निर्माण कराया था।

विपक्ष की मांग है कि संसद का विशेष सत्र बुलाकर सरकार को ऑपरेशन सिंदूर और सीजफायर की परिस्थितियों पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। जवाब में भाजपा ने कहा, “यह 1971 नहीं, 2025 है, और आज भी भारत दुश्मन के घर में घुसकर हमला करने की क्षमता रखता है, चाहे वह परमाणु संपन्न देश ही क्यों न हो।”

विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की उकसावे की कार्रवाई का जवाब देना जरूरी है, लेकिन इसकी लागत सिर्फ सैनिक बलिदान तक सीमित नहीं होती। इतिहास गवाह है कि युद्ध का असर सीधा अर्थव्यवस्था, वित्तीय बाजार और आम आदमी की जेब पर पड़ता है। कारगिल युद्ध के दौरान भारत को रोजाना करीब ₹1,460 करोड़ का खर्च उठाना पड़ा था। आज की परिस्थितियों में यह खर्च ₹5,000 करोड़ प्रतिदिन तक जा सकता है। फॉरेन अफेयर्स फोरम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर यह संघर्ष लंबा चलता है, तो अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव पड़ सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *