
राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़
बिहार बीजेपी में बदलाव की ऐसी आंधी चली की नामचीन चेहरे ही सियासी हवा में उड़ गए। कई ऐसे दिग्गजों का टिकट काट दिया गया, जिन्हें इसकी रत्ती भर भी उम्मीद नहीं थी। कई नए लोगों को मौका दिया गया।
बिहार विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीदवारों के चयन में बड़ा बदलाव किया है। भाजपा ने 21 मौजूदा विधायकों का टिकट काटकर पूरे राजनीतिक समीकरण को हिला दिया है। इस फैसले के पीछे चेहरों का बदलाव, जातीय संतुलन और दलगत निष्ठा जैसे कई कारण बताए जा रहे हैं। भाजपा को इस चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के तहत 101 सीटें मिली हैं, जबकि पिछली बार उसने 110 प्रत्याशी उतारे थे। तब 74 सीटों पर पार्टी को जीत मिली थी। इस बार भाजपा ने कुछ ऐसी सीटें भी सहयोगी दलों को दे दी हैं, जहां वह पिछले चुनाव में बहुत कम अंतर से हारी थी।
जातीय गणित में राजपूत नंबर वन
बिहार की राजनीति में मुद्दों के साथ-साथ जातीय समीकरणों की अहम भूमिका होती है। भाजपा ने प्रत्याशियों के चयन में जातीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए सवर्ण, पिछड़ा, अति पिछड़ा और दलित वर्गों को प्रतिनिधित्व दिया है। पार्टी ने सबसे अधिक सवर्ण जातियों से 49 उम्मीदवार उतारे हैं। पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग से 40 तथा दलित वर्ग से 12 प्रत्याशियों को टिकट दिया गया है। इनमें 21 राजपूत, 16 भूमिहार, 11 ब्राह्मण, 13 वैश्य, 12 अति पिछड़ा, 12 दलित, 7 कुशवाहा, 6 यादव, 2 कुर्मी और 1 कायस्थ प्रत्याशी शामिल हैं। इस रणनीति के ज़रिए पार्टी ने पारंपरिक वोट बैंक को साधने के साथ ही सामाजिक समीकरणों को भी मजबूत करने की कोशिश की है।
मौजूदा 21 विधायकों का टिकट छीना गया
भाजपा ने 21 ऐसे विधायकों को टिकट नहीं दिया, जो या तो पुराने चेहरे थे या फिर पिछले कुछ समय में पार्टी के भीतर उनकी भूमिका पर सवाल उठे थे। कुछ विधायक ऐसे भी थे जो दूसरे दलों से आकर भाजपा में शामिल हुए थे और कुछ पर फ्लोर टेस्ट के दौरान संदिग्ध भूमिका के आरोप लगे थे। सीतामढ़ी की रीगा सीट से मोतीलाल प्रसाद की जगह बैद्यनाथ प्रसाद को टिकट दिया गया है।