राष्टï्रीय प्रस्तावना न्यूज नेटवर्क।
मल्लावां (हरदोई)। रामचरित मानस को पढऩे से ह्द्रय में परिवर्तन होता है। मानस का सार अपनाकर मानव अपने जीवन का महत्व समझ सकता है। यह ग्रंथ सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व आध्यात्मिक शिक्षा से परिपूर्ण है। यह बात चित्रकूट से पधारे कामदगिरि पीठाधीश्वर जगतगुरू स्वामी रामरूपा चार्य जी ने कही।
कस्बे में शांति सत्संग मंच का आध्यात्मिक एवं संत सम्मेलन चल रहा है। जिसमें दूर-दराज से आने वाले संत अपनी वाणी से श्रोताओं को ज्ञान दे रहे हैं। स्वामी रामरूपा र्चा ने कहा कि राम व भरत जैसे चरित्रों को दैनिक जीवन में उतारने की आवश्यकता है। भगवान ने वरिष्ठïता के कारण मनुष्य को अधिक दिया है पर हम अपनी क्षमताओं को पहचान नहीं पा रहे हैं। आज भारत जैसे महान राष्ट्र को भारतीय संस्कृति की उपासना की दिव्य आवश्यकता है ।
हनुमत द्वार पीठाधीश्वर स्वामी धीरेंद्राचार्य जी ने बताया कि राम कथा से चिंतन और आध्यात्मिक ऊर्जा का शरीर में प्रवाह होता है। सत्संग मानव जीवन की बड़ी आवश्यकता है। मानव जीवन में सात्विकता आए उसके लिए राम कथा का सुनना और समझना बहुत जरूरी है।
पारीक्षा पीठाधीश्वर महावीर दास जी ने अपने आध्यात्मिक प्रवचन ने कहा कि किसी भी समाज, राष्ट्र और देश को सुखी बनाने के लिए चरित्र बहुत ही जरूरी है। आज समाज में चरित्र का हनन हो रहा है। भाई के प्रति भरत जैसे त्याग को भूलकर जानवरों की तरह व्यवहार कर रहे हैं।
जबलपुर मध्य प्रदेश से आईं पंडित आस्था दुबे जी ने बताया की अभिमान या अहंकार सबसे भयंकर दोष है। रावण ने तपस्या से ब्रह्मा और शिव भक्त होने पर सभी शक्तियां प्राप्त कर ली थी लेकिन अहंकार के कारण उसके पूरे वंश का विनाश हो गया। इस मौके पर आयोजक प्रकाशचंद गुप्ता व डॉॅ. अशोक चंद्र गुप्त आदि मौजूद रहे।












































































