
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी राजनीतिक दल में शामिल होना रोजगार के समान नहीं है। यह कहते हुए शीर्ष अदालत ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ याचिका खारिज कर दी जिसमें राजनीतिक दलों को कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (पॉश अधिनियम) के दायरे में लाने से इन्कार कर दिया गया था।
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने कहा कि राजनीतिक दलों पर पॉश अधिनियम लागू करने से यह ब्लैकमेल तथा दुरुपयोग का एक साधन बन जाएगा। याचिकाकर्ता की वकील शोभा गुप्ता ने तर्क दिया कि अधिनियम के तहत पीड़ित महिला की परिभाषा इस बात तक सीमित नहीं है कि कोई व्यक्ति कार्यरत है या नहीं। उन्होंने हाईकोर्ट के इस विचार पर सवाल उठाया कि जब तक वह कार्यरत न हो, पीड़ित महिला इस प्रावधान का इस्तेमाल नहीं कर सकती।
एक अगस्त को कोर्ट ने राजनीतिक दलों को 2013 के कानून के दायरे में लाने के लिए दायर जनहित याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया था और कहा था कि यह विधायी नीति का मामला है। तब पीठ ने कहा था कि अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती क्योंकि यह संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है।
इसके बाद अदालत ने याचिकाकर्ता की वकील शोभा गुप्ता को सुझाव दिया कि वह कुछ महिला सांसदों को शामिल करें और एक निजी विधेयक पेश करें। तब वकील ने तर्क दिया था कि राजनीतिक दल पॉश अधिनियम के अर्थ में कार्यस्थल और नियोक्ता का गठन करना चाहिए, जिससे उन्हें महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं के यौन उत्पीड़न से निपटने के प्रावधानों का पालन करना होगा।