राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ । मंगलवार को भारत के 15वें उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद, सीपी राधाकृष्णन ने अपनी जीत को एक सशक्त वैचारिक बयान के रूप में प्रस्तुत करने में ज़रा भी देर नहीं लगाई। मीडिया को दिए अपने पहले संबोधन में, नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति ने ज़ोर देकर कहा कि यह चुनाव विचारधाराओं की लड़ाई थी और मतदान के रुझान से पता चलता है कि राष्ट्रवादी विचारधारा कुल मिलाकर विजयी हुई है। राधाकृष्णन की निर्णायक जीत, जिसमें उन्हें विपक्षी उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी के 300 के मुकाबले 452 वोट मिले, उनके जनादेश के दावे को स्पष्ट संख्यात्मक समर्थन प्रदान करती है। 767 सांसदों के निर्वाचक मंडल में 152 वोटों का अंतर भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की मज़बूत संसदीय स्थिति को रेखांकित करता है। यह विपक्ष के भारत ब्लॉक के विपरीत था, जिसने इस मुकाबले को “वैचारिक लड़ाई” के रूप में प्रस्तुत करने के बावजूद, अपेक्षित मतों की संख्या से कम रहा। राधाकृष्णन ने कहा कि यह हर भारतीय की जीत है, हम सभी को मिलकर काम करना होगा। अगर हमें 2047 तक विकसित भारत बनाना है तो विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा।’’ राधाकृष्णन ने कहा कि अपनी नयी भूमिका में वह राष्ट्र के विकास के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देंगे। नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं। ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। लोकतंत्र के हित को ध्यान में रखा जाएगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हर पद महत्वपूर्ण है और हर पद की अपनी सीमाएं होती हैं। हमको यह समझना होगा कि हमें इसी दायरे में काम करना है। यह जीत राधाकृष्णन के लंबे राजनीतिक जीवन में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर भी है, जिसकी जड़ें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा में गहराई से जुड़ी हैं। कोयंबटूर से दो बार सांसद और तमिलनाडु में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, उन्होंने लगातार राष्ट्रवादी एजेंडे को आगे बढ़ाया है। अपने चुनाव से पहले, उन्होंने महाराष्ट्र और झारखंड के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।

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