“झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार के वित्तीय वादे अधर में फंसे हैं। भाजपा के साथ संभावित तालमेल से राज्य की राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं। जानें मइयां सम्मान योजना और धान समर्थन मूल्य से जुड़ी पूरी रिपोर्ट।“
अभयानंद शुक्ला
समन्वय संपादक
- बिहार में चुनाव के समय ही मिल गये थे इस बात के संकेत
- हेमंत की नई सत्ता में भाजपा को डिप्टी सीएम पद संभव
- पत्नी कल्पना सोरेन को केंद्र में मंत्री पद देने की सुगबुगाहट
- हेमंत-कल्पना की दिल्ली यात्रा से चर्चाओं को मिला है बल
- यानी कांग्रेस-राजद की अकड़ ने बिगाड़ा इंडी गठबंधन का नक्शा
नयी दिल्ली। झारखंड की राजनीति अब उल्टी दिशा में घूमने वाली है। या यों कहें तो इंढी गठबंधन की एक और राज्य से बिदाई होने वाली है। राजनीति चूंकि जरूरतों का मेल और संभावनाओं का खेल कही जाती है, ऐसे में ये नियम झारखंड में भी काम पर है। जनता से किए वादों को पूरा करने की मजबूरी, सुकून के साथ सरकार चला पाने की इच्छा और इंडी गठबंधन से मिली उपेक्षा ने झारखंड की राजनीति में एक ऐसा काकटेल तैयार किया है कि अब नया राजनीतिक समीकरण आकार लेने की ओर है। इसकी घोषणा कभी भी हो सकती है।
इस समीकरण की खास बात यह भी होगी कि यह नंबर गेम के लिहाज से बीस होगा। वर्तमान गठबंधन को जहां 56 विधायकों का समर्थन प्राप्त है, वहीं नये को 58 विधायकों समर्थन प्राप्त हो जाएगा। वैसे तो झामुमो की सांसद महुआ मांझी ने ऐसी किसी संभावना से ही इंकार कर दिया है परंतु राजनीति में जो सामने दिखता है, वो होता नहीं है, और जो होता है वो दिखता नहीं है। इसके अलावा इस नए गठबंधन की जितनी जरूरत भाजपा को है, उतनी ही हेमंत सोरेन को भी है। बस देखना ये है कि इसकी घोषणा कब होती है।
कहते हैं कि राजनीति में अक्सर संकेतों की भाषा में बात होती है। ये रणनीतिक संयम का संकेत भी होता है। और खबर है कि झारखंड की राजनीति इस समय उस मोड़ पर खड़ी है, जहां से किसी भी क्षण एक नये गठबंधन के साथ एक नए शक्ति-संतुलन की घोषणा हो सकती है। और ये सिर्फ सत्ता परिवर्तन का मामला नहीं होगा, बल्कि राज्य की सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों के समाधान की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।
सूत्रों के अनुसार इस विषय पर शीर्ष स्तर पर चर्चा तेज है, इसकी आहट भी साफ सुनाई देने लगी है। बिहार में राजग की प्रचंड जीत के बाद राजनीतिक हलचल अब झारखंड में दिखाई देने लगी है। वैसे इसकी बुनियाद तभी पड़ गई थी जब बिहार में महा गठबंधन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा को एक भी सीट लड़ने के लिए नहीं दी थी, और दुखी मन से हेमंत सोरेन ने बिहार के चुनाव में नहीं उतरने का फैसला लिया था।
उसके बाद वे न तो बिहार में महागठबंधन का प्रचार करने गए और न ही उसके पक्ष में वोट करने की कोई अपील ही की। सूत्र तो यह भी बताते हैं कि झामुमो ने बिहार और झारखंड के बार्डर इलाकों में एनडीए को गुप्त समर्थन तक दे दिया था। कांग्रेस और राजद दोनों ही दलों ने झामुमो को दरकिनार कर आपस में सीटों की बंदरबांट कर ली थी। और यह नया गठबंधन उसी उपेक्षा के गर्भ से पैदा हुआ, बताया जाता है।
दिल्ली और झारखंड से आयी खबरों के अनुसार झारखण्ड में इस समय सत्ता का समीकरण भले ही शांत दिख रहा है, पर भीतरखाने बदलाव की आहट तेज है। और ये चर्चा शुरू हुई है, बीते 28 नवंबर को झारखंड राज्य का स्थापना दिवस मनाने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन के दिल्ली जाने के बाद। दोनों अभी भी वहीं पर बताए जाते हैं।खबर है कि दोनों ने वहां पर भाजपा के एक बड़े नीति निर्धारण और निर्णय लेने की क्षमता बाले नेता से मुलाकात भी की है और बात मंत्रालयों के बंटवारे तक की हो गई है।
नये समीकरण में भाजपा को डिप्टी सीएम पद पर और हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना को केंद्र सरकार में समायोजित किए जाने पर प्राथमिक सहमति बन गई है। अब इस समय वोट बैंक के गुणा-भाग पर कवायद शुरू है। बताया तो यह भी जा रहा है कि डिप्टी सीएम पद के लिए बाबूलाल मरांडी और चंपाई सोरेन में से कोई एक नाम हो सकता है।
झारखंड विधानसभा में सत्ता का समीकरण
अब अगर हेमंत सोरेन एनडीए में जाने का फैसला करते हैं तो झारखंड में सत्ता समीकरण क्या होगा, इसे भी समझना जरूरी है। झारखंड विधानसभा में 81 सीटें हैं, और यहां बहुमत के लिए 41 विधायकों की जरूरत होती है। अभी सरकार हेमंत सोरेन चला रहे हैं, और उनकी पार्टी झामुमो के पास 34 सीटें हैं।
इसके अलावा उनके साथ गठबंधन में कांग्रेस, राजद और लेफ्ट हैं। कांग्रेस के पास 16, राजद के पास 4 और लेफ्ट के पास 2 विधायक हैं। और इनकी कुल संख्या 56 है। यदि हेमंत सोरेन एनडीए के साथ जाते हैं तो नंबर गेम बदल जाएगा। और जेएमएम के 34, बीजेपी के 21, लोजपा के एक, आजसू के एक और जेडीयू के एक विधायक को मिलाकर इस नए समीकरण में कुल 58 विधायक होंगे। जो वर्तमान बहुमत से दो अधिक होंगे। यानी नम्बर गेम के लिहाज से कोई दिक्कत नहीं है।
नये गठबंधन की जरूरत तो दोनों ही पक्षों को है
हाल के दिनों में हेमंत सोरेन सरकार को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। विधानसभा चुनावों के दौरान किए गए कई महत्वपूर्ण वादे, जैसे महिलाओं को ‘मइयां सम्मान योजना’ के तहत 2,500 रुपये प्रतिमाह देना और धान का समर्थन मूल्य बढ़ाकर 3,200 रुपये प्रति क्विंटल करना, वित्तीय बाधाओं के कारण अधर में लटके हुए हैं।
इन वादों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता की आवश्यकता है, जिसके बिना इन्हें लागू करना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में, भाजपा के साथ नजदीकियां झामुमो के लिए एक व्यावहारिक कदम हो सकता है। दूसरी ओर, भाजपा भी राज्य में अपनी स्थिति को मजबूत करने के प्रयास में लगी है।
पार्टी के आंतरिक मूल्यांकन में ये बात सामने आई है कि इस मौजूदा राजनीतिक गणित में सत्ता वापसी आसान नहीं होगी, क्योंकि आदिवासी समुदाय में भाजपा कमजोर हुई है। राज्य में उसकी राजनीतिक जमीन भी सिकुड़ती नजर आ रही है। ऐसे में यदि झामुमो के साथ तालमेल का रास्ता खुलता है, तो यह भाजपा के लिए नई ऊर्जा का स्रोत बन सकता है।
इससे यह संदेश भी जाएगा कि पार्टी राज्य के प्रमुख सामाजिक समूहों के साथ संवाद और साझेदारी के लिए तत्पर है। इसके अलावा राज्य की राजनीति में दो विपरीत ध्रुव माने जाने वाले हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी के बीच पिछले कुछ महीनों से राजनीतिक तनाव भी कम हुआ है। ऐसे में इसे भी नये समीकरण की बुनियाद के साथ जोड़ा जा रहा है।

























































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































