
राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क गोला गोकर्णनाथ खीरी : धौरहरा क्षेत्र में खैर की तस्करी अपने चरम पर है। रविवार को धौरहरा रेंज के वन विभाग की टीम ने पढुआ थाना अंतर्गत मोटेबाबा गांव में बड़ी कार्रवाई करते हुए एक खाली मकान से लगभग 70 कुंटल अवैध खैर की लकड़ी बरामद की। कार्रवाई के बाद वन विभाग और खैर माफियाओं के बीच चल रहे कथित गठजोड़ पर भी सवाल उठने लगे हैं। खाली घर बना तस्करी का गोदाम, मजदूरी पर गया परिवार बना ढाल
जिस घर से यह भारी मात्रा में लकड़ी बरामद की गई है, वह जियाराम नामक व्यक्ति का है। वह अपने पूरे परिवार सहित कई महीनों से उत्तराखंड में मजदूरी करने गया हुआ है। तस्करों ने इस मौके का फायदा उठाते हुए घर को लकड़ी डंपिंग सेंटर बना दिया था। वन विभाग की टीम, जिसमें दरोगा कृष्ण लाल, वन रक्षक मोहित कुमार, अंबुज, उत्तम पांडे और अजय दीक्षित शामिल थे, ने गुप्त सूचना के आधार पर गांव में छापेमारी कर यह बरामदगी की। कतर्निया घाट से कटान, नदी पार कर पहुंचाई गई लकड़ी
वन विभाग के अनुसार, यह लकड़ी कतर्निया घाट वन्यजीव प्रभाग के मौरौहा बीट से अवैध रूप से काटी गई है। इसे घाघरा नदी पार कर मोटेबाबा गांव लाया गया, जो कि खैर तस्करी का नया हॉटस्पॉट बन चुका है। लकड़ी को जब्त कर रेंज कार्यालय में सुरक्षित रखा गया है।
डीएफओ नॉर्थ जोन खीरी नवीन खंडेलवाल ने जानकारी दी कि मुखबिर की सूचना पर टीम गठित की गई थी और मौके पर पहुंचकर घर से लकड़ी जब्त की गई। जल्द ही तस्करों की पहचान कर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। पुष्पा 2″ की तर्ज पर खैर तस्करी: मौत से खेलते हैं। ग्रामीणों के अनुसार यह तस्करी किसी फिल्मी सीन से कम नहीं है। रामदरस और राजकुमार उर्फ गुड्डू के इशारे पर गांव के सैकड़ों लोग रात के अंधेरे में जान जोखिम में डाल कर जंगल से लकड़ी काटते हैं और घाघरा नदी पार कर मोटेबाबा लाते हैं। इन ग्रामीणों के लिए यह कार्य दैनिक दिहाड़ी बन गया है। जंगल के जंगली जानवरों और प्रशासन की पकड़ की परवाह किए बिना ये लोग तस्करी के नेटवर्क को मजबूती दे रहे हैं। राजनीतिक संरक्षण और विभागीय मिलीभगत का आरोप
स्थानीय सूत्रों के अनुसार वर्ष 2000 से ही इस अवैध कारोबार को कुछ सफेदपोश नेताओं का संरक्षण प्राप्त है। यही कारण है कि इतने वर्षों में तस्करी के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई। ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग के कुछ कर्मचारी तस्करों से मिलीभगत कर इस व्यापार को नजरअंदाज करते हैं। यहां तक कहा जा रहा है कि “वन विभाग वफादार कुत्ते की तरह रोटी पाकर दुम हिलाने लगता है। मोटेबाबा गांव बना खैर तस्करी का अड्डा पिछले एक वर्ष में करीब एक दर्जन बार मोटेबाबा गांव में खैर की अवैध लकड़ी पकड़ी जा चुकी है। इसके बावजूद यहां आज भी यह कारोबार बेखौफ जारी है। बताया जाता है कि बहराइच जिले के सरकारी जंगलों से हर साल हजारों कुंटल लकड़ी चोरी होती है और मोटेबाबा गांव में डंप कर बाहर के तस्करों को सप्लाई की जाती है। एफआईआर दर्ज, पर तस्करी जारी हालांकि खैर तस्करी के मामलों में कई बार एफआईआर भी दर्ज की गई है, लेकिन न तो किसी बड़े तस्कर की गिरफ्तारी हुई और न ही किसी राजनीतिक सरंक्षणधारी पर कार्रवाई। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक सख्ती और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते यह अवैध व्यापार रुकने की बजाय और मजबूत होता जा रहा है।
क्या कहता है कानून –
भारतीय वन अधिनियम 1927 के तहत बिना अनुमति खैर पेड़ों की कटाई और उसका परिवहन दंडनीय अपराध है, जिसमें जुर्माना, कारावास, और संपत्ति जब्ती तक का प्रावधान है। लेकिन खीरी जिले में कानून की धाराएं तस्करों के रसूख के आगे बेबस नजर आती हैं। इस बार बड़े ज़ख़ीरा मिलने पर वन विभाग के अधिकारियों ने भरोसा दिलाया है कि इस ताजा कार्रवाई के बाद खैर तस्करी पर शिकंजा कसने के लिए अभियान और तेज किया जाएगा। लेकिन जब तक सफेदपोशों और विभागीय साठगांठ पर कड़ी कार्रवाई नहीं होती, तब तक यह कार्रवाई महज खानापूर्ति बन कर रह जाएगी।