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“बिहार में जल्द उपचुनाव की आशंका बढ़ी। RJD और कांग्रेस में टूट, बागी विधायक NDA के संपर्क में। रोहिणी समर्थकों के विद्रोह और तेजस्वी को नेता प्रतिपक्ष न बनने देने की कवायद तेज।”

अभयानंद शुक्ल
समन्वय सम्पादक

पटना। बिहार में जल्द उपचुनाव कराए जाने की राजनीतिक चर्चाएँ बेहद तेज हो गई हैं। नीतीश कुमार 20 नवंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं, लेकिन सत्ता की नींव जमने से पहले ही राज्य की राजनीति में नए समीकरण बनते दिखाई दे रहे हैं। खबर है कि भाजपा और जदयू की नजरें राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के उन विधायकों पर हैं जो या तो असंतुष्ट हैं या पार्टी नेतृत्व से नाराज। सूत्रों के अनुसार यदि विभाजन नहीं हुआ तो कई विधायक इस्तीफा देकर उपचुनाव की राह खोल सकते हैं।

राजनीतिक हलचल का बड़ा कारण रोहिणी आचार्य समर्थकों का विद्रोह है। लालू यादव की बेटी रोहिणी के समर्थकों ने पार्टी सुप्रीमो के सामने ही तेजस्वी यादव के सलाहकार संजय यादव को हटाने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया। उनका आरोप है कि संजय यादव के रवैये ने रोहिणी का अपमान किया है। इस मुद्दे से RJD के 7–8 विधायक खासे नाराज बताए जा रहे हैं। यह संख्या बढ़ सकती है क्योंकि कई विधायकों का कहना है कि “जो नेता परिवार नहीं संभाल सकता, वह पार्टी क्या संभालेगा।”

दूसरी वजह यह है कि कई RJD विधायकों को साफ समझ में आ गया है कि राज्य की सत्ता फिलहाल NDA के पास ही रहेगी। जिन्होंने चुनाव में भारी पैसा लगाया, वे चाहते हैं कि भविष्य सुरक्षित रहे। ऐसे में भाजपा–जदयू उनके लिए “नई राजनीतिक शरण” बनकर उभरे हैं।

RJD के 25 विधायकों में से 22 हिंदू और 3 मुस्लिम हैं। खबर है कि कुछ मुस्लिम विधायक AIMIM या जदयू के संपर्क में हैं, जबकि हिंदू विधायकों में से कई भाजपा की ओर झुक चुके हैं। वहीं कांग्रेस के छह विधायकों में से चार हिंदू और दो मुस्लिम हैं—और उनमें भी टूट की आशंका जताई जा रही है। क्योंकि संख्या कम होने के कारण कांग्रेस टूट के लिए अधिक संवेदनशील स्थिति में है।

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि RJD की टूट का माहौल रोहिणी आचार्य ने ही बना दिया है। उनके समर्थकों की नाराज़गी और तेजस्वी के प्रति बेरुख़ी ने पार्टी के भीतर बगावती हवा को तेज कर दिया है। कांग्रेस में भी परिणाम आने के तुरंत बाद अखिलेश प्रसाद सिंह और शकील अहमद जैसे नेताओं ने विरोधी तेवर दिखाए। शकील अहमद तो इस्तीफा भी दे चुके हैं, जिससे विधायकों में असुरक्षा की भावना और बढ़ गई है।

नीतीश कुमार को लेकर भी खूब चर्चा है। कुछ लोग मानते हैं कि वे अस्थिर दिमाग के हैं और कभी भी भाजपा से नाराज होकर महागठबंधन का दामन पकड़ सकते हैं। जबकि दूसरी राय यह है कि इस बार नीतीश ने पूरी तरह भाजपा के सामने समर्पण कर दिया है और अब “गठबंधन तोड़ने” वाली गलती नहीं करेंगे। 2015 में महागठबंधन के साथ जाने को वे अपनी सबसे बड़ी राजनीतिक गलती मान चुके हैं।

  • इस पूरे घटनाक्रम की सबसे महत्वपूर्ण वजह―
  • NDA एक भी सूरत में तेजस्वी यादव को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनने देना चाहता।
  • यदि कुछ विधायकों का इस्तीफा करा दिया जाए तो RJD संख्या बल में नीचे आ जाएगी और तेजस्वी स्वतः ही पात्रता खो देंगे। बताया जा रहा है कि यह रणनीति भाजपा और जदयू दोनों की सहमति से बनाई गई है।

इन सभी कारणों से बिहार में जल्द उपचुनाव की संभावनाएँ बेहद प्रबल दिख रही हैं। सत्ता की नई स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है—अब सिर्फ समय का इंतजार है।

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विशेष संवाददाता – मनोज शुक्ला

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