
राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क। उत्तर प्रदेश की राजनीति में रिश्तों के उतार-चढ़ाव का लंबा इतिहास रहा है, लेकिन जब बात दो बड़े और प्रभावशाली नेताओं— मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गोंडा के पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह की हो, तो यह केवल व्यक्ति-विशेष की नहीं, बल्कि सत्ता के समीकरणों की कहानी बन जाती है। कभी गहरे दोस्त माने जाने वाले ये दोनों नेता बीते कुछ वर्षों में खामोश टकराव और आपसी दूरियों के प्रतीक बन चुके थे। लेकिन हालिया मुलाकात और गर्मजोशी ने इस रिश्ते में एक नया मोड़ ला दिया है, जोकि इस समय सुर्खियों में है।हम आपको याद दिला दें कि 2000 के दशक की शुरुआत में जब योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से नई पीढ़ी के तेजतर्रार नेता के रूप में उभर रहे थे और बृजभूषण शरण सिंह अयोध्या व गोंडा क्षेत्र के ताकतवर ठाकुर नेता बन चुके थे, तब इन दोनों के बीच मजबूत संबंध थे। इनका जातीय समीकरण, हिंदुत्व की समान विचारधारा और पूर्वांचल पर नियंत्रण की महत्वाकांक्षा, इन सबने इन्हें एक स्वाभाविक राजनीतिक जोड़ी बना दिया था। योगी के लिए बृजभूषण जैसे पुराने राजनीतिक ‘मैदानी’ नेता का समर्थन ज़रूरी था, तो वहीं बृजभूषण के लिए योगी की धार्मिक छवि एक शक्ति थी। हम आपको बता दें कि बृजभूषण शरण सिंह भारतीय राजनीति के उस चेहरे का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो अपने इलाके में निर्विवाद दबदबे के लिए जाने जाते हैं। छह बार के सांसद और एक प्रभावशाली ठाकुर नेता के रूप में उन्होंने पूर्वांचल में एक खास राजनीतिक क्षेत्र गढ़ा है। उनका असर गोंडा, बलरामपुर, बहराइच और अयोध्या तक फैला है।लेकिन 2022 के बाद यह दोस्ती धीरे-धीरे दरकती नज़र आई। इसके पीछे कई कारण माने गए। जैसे- योगी आदित्यनाथ बतौर मुख्यमंत्री एक केंद्रीकृत सत्ता मॉडल बना रहे थे, जिसमें स्वतंत्र क्षेत्रीय क्षत्रपों की भूमिका सीमित होती जा रही थी। बृजभूषण जैसे नेता, जो वर्षों से अपने इलाके में ‘स्वतंत्र सत्ता केंद्र’ बने हुए थे, इस बदलाव से असहज थे। इसके अलावा, योगी सरकार की शैली कई पुराने नेताओं के लिए चुनौती बन गई। बृजभूषण समर्थकों का आरोप था कि प्रशासन उन्हें और उनके समर्थकों को निशाना बना रहा है। वहीं योगी के खेमे को लगता था कि बृजभूषण पार्टी अनुशासन से बाहर जाकर काम करते हैं। इसके अलावा, महिला पहलवानों द्वारा बृजभूषण पर लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद भाजपा नेतृत्व के लिए यह सवाल बन गया था कि उन्हें कितना समर्थन दिया जाए। योगी सरकार ने इस मुद्दे पर स्पष्ट दूरी बनाए रखी। लेकिन अब तीन साल की दूरी के बाद योगी और बृजभूषण की हालिया मुलाकात ने राजनीति में हलचल मचा दी है। यह सिर्फ व्यक्तिगत मेल-मिलाप नहीं, बल्कि एक गहन राजनीतिक संदेश है। दरअसल भाजपा को उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में एक बार फिर एकजुटता दिखाने की आवश्यकता है। सपा, कांग्रेस, और बसपा नए सिरे से यहां आधार तलाश रहे हैं। ऐसे में योगी और बृजभूषण का साथ आना भाजपा के लिए ताकत का प्रदर्शन है। हम आपको यह भी बता दें कि यह मुलाकात संभवत: भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की सहमति से हुई है। इसके अलावा, दोनों नेता ठाकुर समुदाय से आते हैं, यदि यह दोनों साथ चलते हैं तो पूरे पूर्वांचल में इस वोट बैंक पर मजबूत पकड़ बना सकते हैं। हम आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भले दूर हो, लेकिन भाजपा में अभी से ही आंतरिक समीकरण बनने शुरू हो गए हैं। ऐसे में योगी और बृजभूषण की दोस्ती भविष्य के भीतरू संघर्षों को टालने का माध्यम भी हो सकती है। देखा जाये तो योगी आदित्यनाथ और बृजभूषण शरण सिंह की यह दोस्ती भाजपा के अंदर शक्ति-संतुलन, क्षेत्रीय सशक्तिकरण और जातीय समीकरणों को साधने की कवायद भी है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह दोस्ती सिर्फ दो नेताओं की नहीं, बल्कि दो राजनीतिक संस्कृतियों— ‘संगठित सत्ता’ और ‘स्थानीय ताकत’ के बीच नए गठबंधन की शुरुआत है।योगी आदित्यनाथ और बृजभूषण शरण सिंह की मुलाकात के कुछ और भी सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। हाल ही में बृज भूषण के विधायक बेटे की उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से हुई मुलाकात भी सुर्खियों में है। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में होने वाले संभावित फेरबदल में बृज भूषण के बेटे को जगह दी जा सकती है। यह दिखाता है कि भाजपा अपने पुराने और क्षेत्रीय क्षत्रपों को साथ लेकर ही आगे बढ़ना चाहती है। वहीं योगी आदित्यनाथ, जो अक्सर अपने ‘नैतिक’ और ‘कठोर’ प्रशासनिक रुख के लिए जाने जाते हैं, अब सियासी यथार्थवाद के साथ भी संतुलन बनाते दिख रहे हैं।