राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क। बिहार में चल रही विशेष सघन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया पर उठे सियासी तूफान के बीच अब भारतीय निर्वाचन आयोग ने इस पुनरीक्षण को पूरे देश में लागू करने की घोषणा कर दी है। हम आपको बता दें कि बिहार में SIR प्रक्रिया के तहत निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची में 18 लाख मृत मतदाता, 26 लाख स्थानांतरित मतदाता और 7 लाख डुप्लिकेट प्रविष्टियाँ पाई थीं। इस कार्रवाई को विपक्षी दलों, विशेषकर राजद और तेजस्वी यादव ने पक्षपातपूर्ण और जनाधार को छीनने की साजिश बताया। परिणामस्वरूप मामला संसद तक पहुंचा और मानसून सत्र की कार्यवाही लगातार चार दिनों तक बाधित रही। यह बताता है कि प्रशासनिक सुधार की एक कवायद किस तरह राजनीतिक हथियार बन जाती है।दूसरी ओर, बिहार की घटनाओं से सबक लेते हुए निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया कि वह यह प्रक्रिया अब संपूर्ण देश में लागू करेगा, जिससे मतदाता सूचियों की शुद्धता सुनिश्चित की जा सके। हम आपको बता दें कि आयोग ने अपने आदेश में कहा, “चुनाव आयोग ने पूरे देश में विशेष सघन पुनरीक्षण शुरू करने का निर्णय लिया है ताकि मतदाता सूचियों की शुद्धता और अखंडता को सुनिश्चित किया जा सके।” आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों के लिए मतदाता सूची की शुचिता मौलिक आवश्यकता है। इसके लिए आवश्यक प्रक्रियाएँ, योग्यताएँ और नियम जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (RPA 1950) और निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960 (RER, 1960) के अंतर्गत निर्धारित हैं।साथ ही चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य नागरिकता की जांच नहीं, बल्कि मतदाता की पहचान की पुष्टि है। आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड केवल पहचान की पुष्टि के साधन हैं— नागरिकता के प्रमाण नहीं। यह स्पष्टता इसलिए दी गई क्योंकि कई विपक्षी नेताओं ने इसे “छँटनी” और “राजनीतिक जातीयकरण” की कोशिश करार दिया था। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और अगली सुनवाई 28 जुलाई को होनी है।देखा जाये तो चुनाव आयोग की यह पहल निस्संदेह लोकतंत्र को स्वच्छ और मजबूत करने की दिशा में उठाया गया कदम है। मतदाता सूची में मृतक, डुप्लिकेट या स्थानांतरित व्यक्तियों के नाम होना, चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। हालाँकि, इस प्रक्रिया को राजनीतिक रंग देकर विरोध करना इस संवेदनशील मुद्दे का राजनीतिकरण करना प्रतीत होता है। जरूरत इस बात की है कि सभी राजनीतिक दल लोकतंत्र की गरिमा को बनाए रखते हुए सुधारात्मक कदमों में सहयोग दें।बहरहाल, SIR प्रक्रिया केवल आंकड़ों की समीक्षा नहीं है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की आत्मा (मतदाता) को सम्मानित करने की कोशिश है। इसे राजनीति की बजाय प्रक्रिया की दृष्टि से देखना ही विवेकपूर्ण होगा।

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