राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़
बिहार चुनाव को लेकर एनडीए में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हो गया है। भाजपा औऱ जदयू के खाते में 101-101 सीटें आई है। जबकि चिराग पासवान की पार्टी को 29 सीटें मिली हैं। इस बार भाजपा में सहयोगी दलों को तहरीज दी है।
बिहार के सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए ने सीटों पर समझौता फाइनल कर लिया है। समझौते के अनुसार भाजपा-जदयू 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी को 6-6 सीटें मिली हैं। इस पूरी डील में चिराग पासवान सबसे बड़े विजेता कहे जा सकते हैं जिन्होंने पिछली बार केवल एक सीट पर जीत पाने के बाद भी इस बार गठबंधन में 29 सीटें हासिल करने में सफलता हासिल कर ली हैं।
एनडीए के सीट समझौते पर सभी सहयोगियों ने कहा है कि बिहार के हित में उन सबने आपस में मिलजुलकर निर्णय किया है। लेकिन असलियत यह है कि गठबंधन का कोई भी हिस्सेदार बिहार से सरकार अपने हाथ से फिसलने नहीं देना चाहता था, और इसलिए सबने अपने-अपने हिस्से की कुर्बानी देकर एनडीए गठबंधन को बनाए रखने का निर्णय किया है।
भाजपा पूरे गठबंधन की जान है। चुनाव में सबसे ज्यादा वोट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर पड़ते हैं। पिछले चुनाव में उसने 74 सीटों पर जीत हासिल की थी, इस लिहाज से उसे गठबंधन में सबसे ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए थी, लेकिन इसके बाद भी नीतीश कुमार को अपने पाले में बनाए रखने के लिए पार्टी ने न केवल मात्र 101 सीटों पर लड़ने का फैसला किया, बल्कि उसने मुख्यमंत्री पद के साथ-साथ 101 सीटें भी जदयू को दी।
नीतीश कुमार किसी भी तरह चिराग पासवान के पक्ष में नहीं कहे जाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के कारण जदयू को मिली करारी हार की चोट नीतीश कुमार को अभी भी साल रही है। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपने हिस्से में से 14 सीटों को कम करने पर हामी भरी। इसे चिराग पासवान की दबाव की राजनीति का परिणाम कहा जा रहा है।
समझौते में जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा ने भी अपने-अपने कदम पीछे खींचे हैं। जीतन राम मांझी का सपना था कि वे बिहार में कम से कम आठ-दस सीटें हासिल कर अपनी पार्टी को राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा दिला पाएंगे। लेकिन गठबंधन में उन्हें केवल छः सीटों पर सिमटना पड़ा है। उनकी ये सीटें पिछले चुनाव से भी एक कम है। इसी प्रकार अति महत्वाकांक्षी उपेंद्र कुशवाहा भी अपने लिए बड़ी दावेदारी कर रहे थे, लेकिन उन्हें केवल छः सीटों पर सिमट कर रह जाना पड़ा है।
यानी गठबंधन के सभी सहयोगियों ने अपने-अपने हिस्से की कुर्बानी देकर बिहार विधानसभा चुनाव को जीतने के लिए कदम आगे बढ़ाय़ा है। उनकी इस कोशिश का नतीजा क्या रहा, यह 14 नवंबर को पता चलेगा जब चुनाव के परिणाम घोषित किए जाएंगे।


























































































































































































































































































































































































































































































































































































