यूपी की राजनीति में बड़ा बदलाव, सपा कांग्रेस सीट बंटवारा, अखिलेश यादव रणनीति, यूपी चुनाव गठबंधन फार्मूला, कांग्रेस सीट मांग विवाद, यूपी में सपा की चुनावी रणनीति, बिहार परिणाम का प्रभाव यूपी राजनीति, UP politics big change, SP Congress seat sharing, Akhilesh Yadav strategy, UP election alliance formula, Congress seat demand dispute, SP election plan UP, Bihar election impact on UP politics, सपा कांग्रेस गठबंधन सीट फार्मूला, यूपी चुनाव सीट वितरण विवाद, अखिलेश यादव कांग्रेस रणनीति, यूपी राजनीतिक बदलाव विश्लेषण, यूपी विधानसभा चुनाव सीट समझौता, SP Congress alliance seat formula, UP election seat sharing dispute, Akhilesh Yadav Congress strategy, Uttar Pradesh political analysis, UP assembly seat settlement,

“यूपी की राजनीति में बड़ा बदलाव बिहार में कांग्रेस की खराब प्रदर्शन के बाद सपा सीट बंटवारे पर सतर्क हो गई है और कांग्रेस को केवल 50 से 60 सीटें देने के सूत्र पर कायम है अखिलेश यादव का स्पष्ट संदेश है कि कमजोर साथी को छोड़ेंगे नहीं लेकिन चुनाव में अनावश्यक जोखिम भी नहीं लेंगे पूरी राजनीतिक रिपोर्ट पढ़ें”

यूपी की राजनीति में बड़ा बदलाव सीट बंटवारे पर सपा का संदेश कमजोर साथी नहीं छोड़ेंगे लेकिन जोखिम नहीं उठाएंगे

विशेष लेख – मनोज शुक्ला

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उत्तर प्रदेश की गठबंधन राजनीति को सीधे प्रभावित किया है। बिहार में कांग्रेस 61 सीटों पर लड़ी लेकिन केवल 6 सीटें जीत सकी। यह 10 प्रतिशत की जीत दर है और महागठबंधन में कांग्रेस का सबसे कमजोर प्रदर्शन माना गया। इसी प्रदर्शन ने यूपी में सीट बंटवारे पर कांग्रेस की दावेदारी को कमजोर बना दिया है।

समाजवादी पार्टी ने आंतरिक बैठकों में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जो रणनीति तय की है उसके अनुसार पार्टी स्वयं 340 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और सहयोगियों के लिए केवल 50 से 60 सीटें छोड़ेगी। कांग्रेस की मांग 100 से 125 सीटों की है लेकिन सपा नेतृत्व इसे चुनावी जोखिम के रूप में देख रहा है।

2022 विधानसभा चुनाव के अनुभव भी सपा के रुख को कड़ा बना रहे हैं। पिछली बार सपा ने सहयोगियों को बड़ी संख्या में सीटें दी थीं। रालोद को 33 सीटें, सुभासपा को 17 सीटें और छोटे दलों को लगभग 10 सीटें। लेकिन अब रालोद और सुभासपा दोनों एनडीए में शामिल हो चुके हैं। उनके हिस्से की लगभग 50 सीटें सपा फिर से अपने खाते में रख चुकी है। पार्टी का मानना है कि इन सीटों को कांग्रेस के बजाय छोटे दलों को देना रणनीतिक रूप से अधिक सुरक्षित होगा।

सपा की सीट नीति का दूसरा कारण जातिगत चुनावी समीकरण है। यूपी में सपा का मूल वोट बैंक मुस्लिम और यादव समुदाय है। कांग्रेस के पास यूपी में कोई स्थायी जातिगत वोट बैंक नहीं है। सपा का आकलन है कि कांग्रेस की वोट ट्रांसफर क्षमता सीमित है इसलिए अधिक सीटें देने से चुनावी जोखिम बढ़ सकता है।

कांग्रेस की कमजोर संगठनात्मक स्थिति भी सीटों की संख्या तय करने में बाधक है। पिछले 20 वर्षों में उसके प्रदर्शन के आंकड़े इसका प्रमाण हैं:

वर्ष 2022
जीती सीटें 2
वोट प्रतिशत 2.33

वर्ष 2017
जीती सीटें 7
वोट प्रतिशत 6.25

वर्ष 2012
जीती सीटें 28
वोट प्रतिशत 11.63

वर्ष 2007
जीती सीटें 22
वोट प्रतिशत 8.61

वर्ष 2002
जीती सीटें 25
वोट प्रतिशत 8.96

इस गिरावट के आधार पर सपा की रणनीतिक टीम कांग्रेस को अधिकतम 50 से 60 सीटों की पात्र मानती है।

हालांकि 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कुछ बढ़त मिली। कांग्रेस 17 सीटों पर चुनाव लड़कर 6 सीटें जीतने में सफल रही और उसका वोट प्रतिशत बढ़कर 9.51 हुआ। इन 17 लोकसभा सीटों की 85 विधानसभा सीटों में कांग्रेस को 39 पर बढ़त मिली। कांग्रेस इन्हें अपनी सीट दावेदारी का आधार बना रही है। लेकिन तथ्य यह भी है कि इन 39 में से कई सीटों पर वर्तमान में सपा के विधायक हैं। सपा इन सीटों को छोड़ने को आत्मघाती रणनीति मानती है।

सपा का सबसे बड़ा खतरा यह है कि यूपी में वही स्थिति न हो जो बिहार में हुई। बिहार में मुस्लिम वोट 76 प्रतिशत से घटकर 69 प्रतिशत और यादव वोट 84 प्रतिशत से घटकर 74 प्रतिशत रह गया। AIMIM और छोटे दलों की सक्रियता के कारण वोट विभाजित हुए और महागठबंधन को नुकसान हुआ। यूपी में भी यही समीकरण मौजूद है। AIMIM सक्रिय है, बसपा वापसी के प्रयास में है और बीजेपी पिछड़ा वोट बनाए रखने में सफल रही है। इन परिस्थितियों में सपा सीटों का बड़ा त्याग नहीं करना चाहती।

वर्तमान स्थिति यह स्पष्ट करती है कि गठबंधन टूटेगा नहीं लेकिन सीटों की लड़ाई लंबी चलेगी। सपा की नीति जोखिम मुक्त चुनाव है जबकि कांग्रेस संगठन विस्तार पर जोर दे रही है।

सपा का रुख
340 सीटें स्वयं लड़ना
50 से 60 सीटें सहयोगियों के लिए

कांग्रेस की मांग
कम से कम 100 सीटें
75 जिलों में उपस्थिति

अखिलेश यादव का संदेश है कि गठबंधन को बनाए रखते हुए भी जीत सुनिश्चित करना जरूरी है। उनकी दृष्टि में भावना से अधिक संगठन और प्रतिष्ठा से अधिक प्रदर्शन महत्वपूर्ण है।

उम्मीद है कि आने वाले समय में सीट बंटवारा तय हो जाएगा लेकिन निर्णायक नीति यही रहेगी कि गठबंधन मजबूत भी रहे और चुनावी फायदा भी सुनिश्चित हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *