देश की सांस्कृतिक राजधानी उत्तर प्रदेश का, शहादतों की वीरगाथा का एक गौरवशाली इतिहास है। भारत माँ की स्वतंत्रता, अस्मिता और भूभागीय अखंडता के लिए उत्तर प्रदेश के वीरों ने तत्परता से अपने प्राणों की आहुति दी है। 1857 की क्रांति के शहीद नीलाम्बर-पीताम्बर हो, रानी झांसी हो, बेगम हजरत महल हो, मंगल पाण्डेय हो या कारगिल के शहीद कैप्टन मनोज पाण्डेय भारत माँ के इन रणबांकुरों ने अपने प्राणों की परवाह किये बिना उत्तर प्रदेश की मिट्टी को गौरवान्वित किया है।
उ0प्र0 के कंधों पर आज एक महत्वपूर्ण दायित्व है, वह दायित्व है भारत माँ की रक्षा का, क्योंकि उ0प्र0 की राजधानी लखनऊ का प्रतिनिधित्व देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह करते हैं, और उत्तर प्रदेश से ही चुनकर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी आते हैं। आज भारत माँ की अस्मिता और भूभागीय अखण्डता चीन की सेना ने खंडित की है, मगर रक्षा मंत्री दम साधे और होंठ सिये बैठें हैं और प्रधानमंत्री 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद भी चीन को क्लीन चिट दे रहे हैं।
उक्त दोनों नेताओं ने न सिर्फ भारत की सीमाओं की सुरक्षा से समझौता किया है, अपितु अग्निपथ जैसी योजना लाकर देश की सेना और सैनिकों के भविष्य को अंधकार में धकेल दिया है।
अंधकारमय भविष्य से लथपथ अग्निपथ
दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि मोदी सरकार की अग्निपथ योजना ना तो सदन की सहमति से लाई गई न ही भारतीय सेना की। हाल ही में पूर्व थल सेना अध्यक्ष एम0 एम0 नरवणे ने अपनी प्रकाशित पुस्तक ‘‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’’ में खुलासा किया है कि अग्निपथ योजना के एलान ने तीनों सेनाओं को चौंका दिया था। इतना ही नहीं श्री नरवणे ने अपनी किताब में यह भी लिखा कि अग्निवीरों का वेतन सिर्फ 20 हजार रुपये ही निर्धारित किया गया था फिर सेना के हस्तक्षेप के बाद इसे 30 हजार रुपये किया गया।
अग्निपथ योजना में 17 से 21 वर्ष के युवाओं की भर्ती का प्रावधान है। जिसमें 6 माह की ट्रेनिंग और 42 माह की नौकरी के पश्चात तीन चौथाई सैनिकों को रिटायर कर दिया जायेगा।
6 माह की ट्रेनिंग में तकरीबन 1440 घंटे ट्रेनिंग के होंगे जबकि एन0सी0सी0 के सी0 सार्टीफिकेट होल्डर की टेªनिंग 1520 घंटे की होती है। अर्थात अग्निवीर सैनिक रेगुलर सैनिक से एक तिहाई कम प्रशिक्षित सोलजर हैं और एन0सी0सी0 के सी सार्टीफिकेट होल्डर सोलजर से भी कम प्रशिक्षित हैं। इस तरह अग्निवीरों की फील्ड में तैनाती उनके स्वयं के जीवन तथा देश की सुरक्षा से खिलवाड़ है।
आइये जानते हैं कि अग्निवीर सैनिकों के साथ किये जा रहे भेदभाव का अंतर
अग्निवीरों को पेंशन नहीं
नाम, नमक, निशान
अग्निवीर को सर्विस के दौरान डीए यानी (डियरनैस अलाउंस) नहीं मिलेगा, केवल तनख्वाह मिलेगी, उसमें से भी 30 प्रतिशत सेवा निधि के तौर पर काट लिया जाएगा, जो कि चार साल की सर्विस के बाद दिया जाएगा। अग्निवीर की तनख्वाह व अलाउंसेस रेगुलर सैनिक से कम हैं और सेवा निधि भी 20 प्रतिशत अधिक काटी जा रही है, ताकि उनको आखिर में चार साल बाद थोड़ा अधिक अमाउंट इकट्ठा करके दिया जा सके।
भारत माँ की भूभागीय अखण्डता को खंडित किया गया।
6 मई, 2024 को पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग त्सो में भारत और चीन के सैनिकों के बीच शुरू हुई तकरार की हाल ही में चौथी बरसी मनाई गई है। उस तकरार का अंत 15 जून 2020 को गलवान में हुई भयावह घटना के रूप में हुआ था, जिसमें हमारे 20 बहादुर सैनिकों ने सर्वोच्च बलिदान दिया था। उस घटना के महज चार दिन बाद ही प्रधानमंत्री ने चीन को यह कहते क्लीन चिट दे दी थी कि ‘‘ना कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई हमला और शहीद हुआ है।” प्रधानमंत्री का ऐसा बोलना न सिर्फ़ हमारे शहीद सैनिकों का घोर अपमान था बल्कि पूर्वी लद्दाख में 2,000 वर्ग किलोमीटर हमारी भूमि पर चीनी नियंत्रण को वैध भी ठहराने वाला था।
● चीनी सेना रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण डेपसांग मैदानों के पांच स्थानों (पेट्रोलिंग पॉइंट 10, 11, 11 ए, 12 और 13) पर भारत के सैनिकों को जाने से रोक रही है।
● डेमचोक में तीन महत्वपूर्ण पेट्रोलिंग पॉइंट भी भारतीय सैनिकों की पहुंच से बाहर हैं।
● पैंगोंग त्सो में हमारे सैनिक अब फिंगर 4 से आगे नहीं जा सकते, जबकि पहले वे फिंगर 8 तक जाया करते थे। जहां बफर ज़ोन पर सहमति बनी है, वे एलएसी के हमारे ही हिस्से में आते हैं।
● भारतीय खानाबदोश अब चुशुल में हेलमेट टॉप, मुक्पा रे, रेजांग ला, रिनचेन ला, टेबल टॉप और गुरुंग हिल तक नहीं जा पा रहे हैं।
● गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में, हमारे खानाबदोश अब गश्त बिंदु 15, 16 और 17 तक नहीं जा सकते हैं।
चीन की आक्रामकता और घुसपैठ केवल लद्दाख तक ही सीमित नहीं है। अरुणाचल प्रदेश के साथ चीनी सेना बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रही है, जो भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के लिए सीधा ख़तरा पैदा करने वाला है। यह कॉरिडोर पूर्वाेत्तर भारत को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है। मोदी सरकार ने सीधे तौर पर चीनियों के हिसाब से चालें चलकर मणिपुर और पूर्वोत्तर के अन्य हिस्सों को अस्थिर कर दिया है।
सेना भर्ती के नाम पर युवाओं को ठगा
अग्निपथ स्कीम जून 2022, में आई थी। अग्निपथ स्कीम आने से पहले तकरीबन डेढ़ लाख से ज्यादा युवा इंडियन आर्मी, एयरफोर्स, नेवी के लिए 2019 से लेकर 2022 के बीच की जो भर्तियां निकाली गई थी, उसके तहत अलग-अलग चरणों में उनके मेडिकल, फिजिकल डॉक्यूमेंटेशन, रिटन एग्जामिनेशन कंपलीट किए गए और उसके बाद 31 मई 2022 तक ये बड़े कुशल सैनिक थे, देश की सेवा में बॉर्डर पर काम करने के लिए तैयार थे। देश में भर्ती होने के लिए तैयार थे और अचानक इनके देश सेवा के सपने को, देशप्रेम के सपने को तोड़ दिया जाता है। 31 मई तक डिफेंस वेबसाइट के ऊपर ये चयनित कैंडिडेट थे, जिन्हें कि हमारे देश की सेनाओं में आगे जाकर काम करना था, रेगुलर सैनिक के तौर पर। अचानक इनके सपने टूट जाते हैं, चूर-चूर हो जाते हैं और मोदी सरकार एक हथौड़े से इनके भविष्य का फैसला कर देती है कि अब आप देश के सैनिक नहीं बन सकते।
इन भर्ती परीक्षाओं में 30 लाख से अधिक युवाओं ने अपनी भागीदारी तय की थी जिनसे फार्म भरने के नाम पर 100 करोड़ से अधिक रूपये एकत्र किये गये थे मगर इनके भविष्य को अचानक अंधकारमय कर दिया गया।