
राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क हरदोई : जिला उद्यान अधिकारी ने बताया है कि जनपद में आम के गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए सम-सामयिक महत्व के कीट एवं रोगों का उचित समय प्रबंधन नितान्त आवश्यक है, क्योंकि बौर निकलने से लेकर फल लगने तक की अवस्था अत्यन्त ही संवेदनशील होती है। तुडाई उपरांत आम के बाग में पेड़ों में प्रयाः देखा जा रहा है कि तनों में स्टेम बोरर (तना भेदक-बैटोसेरा रुफोमैक्यूलाटा) नाम का कीट सुरंग बनाकर पौधों को नुकसान पहुंचाता है। कीट लगने पर, जिसकी पहचान है कि तनों से बुरादा निकलने लगता है जिसके उपचार के लिए तने की छाल को हटा दें (जहां पर छेद हो) उसमें डाईक्लोरोवास/नुवान/मैलाथियान (50 ई०सी०) 05 मिली प्रति लीटर का घोल बनाकर गिडार द्वारा निर्मित छिद्रों में डाले अथवा घोल में रुई को डुबोकर छिद्रों में तीली से डाल दें और ग्रीस या गीली मिट्टी से छिद्र को बन्द कर दें तथा मिट्टी में फ्यूराडान ग्रेन्यूल्स 2.50 किग्रा० प्रति एकड़ की दर से खेत की मिट्टी में मिला दें। यदि पूरे खेत में अधिक मात्रा में ऐसा देखा जा रहा है तो सितम्बर के अन्त में जुताई करके बिवेरिया बैसियाना का कल्चर बनाकर मिट्टी में मिला दें जिससे कीटों के प्यूपा, दीमक एवं गिडार इत्यादि पर बिवेरिया बैसियाना की फंगस अटैक करेगी और खुजली जैसी स्थिति उत्पन्न कर उनको नष्ट कर देगी। यह एक जैविक समाधान हो सकता है। आम के बागों में भुनगा कीट कोमल पत्तियों एवं छोटे फलों के रस चूसकर हानि पहुंचाते है। प्रभावित भाग सूखकर गिर जाता है। साथ ही यह कीट मधु की तरह का पदार्थ भी विसर्जित करता है, जिससे पत्तियों पर काले रंग की फफूंद जम जाती है, फलस्वरुप पत्तियों द्वारा हो रही प्रकाश संश्लेषण की किया मंद पड़ जाती है। इसी प्रकार से आम के बौर में लगने वाला मिज कीट मंजरियों एवं तुरन्त बने फलों तथा बाद में मुलायम कोपलों में अण्डे देती है, जिसकी सूंडी अन्दर ही अन्दर खाकर क्षति पहुंचाती है, प्रभावित भाग काला पड़ कर सूख जाता है। भुनगा एवं मिज कीट के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.1ः (2.0 मि०ली० प्रति लीटर पानी) या क्लोरोपाइरीफास 1.5ः (2.0 मि०ली०/ली० पानी) की दर से घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है। इसी प्रकार खर्रा रोग के प्रकोप से ग्रसित फल एवं डंठलों पर सफेद चूर्ण के समान फफूंद की वृद्धि दिखाई देती है। प्रभावित भाग पीले पड़ जाते हैं तथा मंजरियां सूखने लगती हैं। इस रोग से बचाव हेतु ट्राइडोमार्फ 1.0 मिली० या डायनोकेप 1.0 मिली०/ली० पानी की दर से भुनगा कीट के नियंत्रण हेतु प्रयोग किये जा रहे घोल के साथ मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है। बागवानों को यह भी सलाह दी जाती है कि बागों में जब बौर पूर्ण रुप से खिला हो तो उस अवस्था में कम से कम रासायनिक दवाओं का छिड़काव किया जाये जिससे पर-परागण किया प्रभावित न हो सके।