
राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़
चार बार के विधायक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष रामनारायण मंडल के पारिवार से लालू प्रसाद ने बड़ा वादा किया था, लेकिन आज दो वक्त की रोटी के लिए दूध बेच कर रामनारायण मंडल के पोते जिंदगी की गाड़ी खींच रहे हैं.
किसी शायर ने लिखा था ‘न किसी की आंख का नूर हूं… न किसी के दिल का करार हूं…’ आज यह उक्ति स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी और बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत रामनारायण मंडल के वारिसों पर लागू होती दिख रही है. चार टर्म विधायक रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व. रामनारायण मंडल के वारिस आज मुफलिसी की जिंदगी बिताने को विवश हैं. आर्थिक तंगी का आलम यह है कि उनके पौत्र दूध बेचकर किसी तरह जिन्दगी की गाड़ी खींच रहे हैं. इस परिवार में बेबसी की बानगी देख तब सत्ता के शीर्ष नेताओं ने नौकरी देने का दिलासा दिलाया था पर कुछ हासिल नहीं हुआ. आश्वासनों की कब्र पर उम्मीदों का चिराग जलाए पूरे परिवार को अपने दादा की सादगी व ईमानदारी पर गर्व व गौरव है और यही वजह है कि कुछ तस्वीरों में झलकते इतिहास को लोहे के बक्शे में सहेज कर रखा हुआ है.
तीन गायों के भरोसे परिवार का गुजारा
स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष पद को गरिमा मंडित करने वाले रामनारायण मंडल के परिजन आज के दौर में सियासत की विरासत से अलग-थलग पड़ गये हैं. उनका जन्म धमदाहा अनुमंडल के रंगपुरा गांव में हुआ था. वे वर्ष 1952 में बिहार विधान सभा के लिए बनमनखी एवं रानीगंज संयुक्त क्षेत्र से सदस्य निर्वाचित हुए. फिर, 1957 में रानीगंज विधान सभा क्षेत्र से ये चुनाव जीते और इसके बाद तो लगातार कसबा विधान सभा क्षेत्र से वर्ष 1967, 1969 और 1972 में विधान सभा के सदस्य निर्वाचित होते रहे. 11 मार्च 1969 को वे बिहार विधान सभा के अध्यक्ष पद पर आसीन हुए और 20 मार्च 1972 तक उसी पद पर निर्वाचित होते रहे. इस दौरान वे देश और समाज के लिए जीये पर अपने लिए कुछ भी अर्जित नहीं किया. पौत्र संजीव कुमार बताते हैं कि गांव में कुछ पुश्तैनी जमीन जरुर थी पर वह विवादों की भेंट चढ़ी है. पूर्णिया के मधुबनी स्थित अमला टोला बड़ी ठाकुरबाड़ी के समीप स्थित उनका घर भी जर्जर हो चुका है. महज 3 गायों के भरोसे किसी तरह इस परिवार का गुजारा हो रहा है.
गांव की जमीन पर दूसरों का कब्जा
रामनारायण मंडल के परिवार की माली हालत इतनी खस्ताहाल है कि पूर्णिया कॉलेज में बीसीए में दाखिला लेने वाले पौत्र ऋषभ कुमार को घर की तंगहाली के कारण बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. दूसरे पौत्र संजीव बताते हैं कि उनके दादा जी ने देश की आजादी में अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया और पूरा जीवन सादगी में गुजार दिया. आज के दौर में अर्थ संकट से तो गुजर ही रहे हैं और मुश्किलें भी कम नहीं हैं. लेकिन हमें गर्व है कि हम उस शख्सियत के पौत्र हैं, जिन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी सम्मान देती थीं. बकौल संजीव, मधुबनी का यह मकान दादाजी को उन दिनों कोलकाता के किसी व्यक्ति ने दिया था, जब वे यहां वकालत करते थे. पौत्र और परपौत्र समेत परिवार में अभी कुल 16 लोग हैं, जिनका गुजारा किसी तरह हो रहा है. संजीव कहते हैं कि गांव की जमीन पर दूसरों का कब्जा है पर कहीं से मदद नहीं मिल रही है. उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगायी.