The audience became emotional after hearing the birth story of King Parikshit.

राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क हरियावां : हरियावां क्षेत्र के बिलहरी गांव में चल रही सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा में कथा व्यास आचार्य पंडित गिरीश चंद्र दीक्षित ने बताया कि श्रीमद भागवत कथा कोई साधारण ग्रन्थ नहीं है न ही कोई किताब है भागवत भगवान का एक बांगमयी विग्रह है जिसमें साक्षात् कृष्ण विराजमान है भागवत का अर्थ है विद्या बतामं भगवते परीक्षण जिसमें बड़े बड़े विद्वानों का परीक्षण हो वही भागवत है जिसको सुनकर जगत का स्वरूप ज्ञात होता है जीव का स्वरूप होता है भगवान का स्वरूप होता है वहीं इसी तृतीय बेला में कथा व्यास आचार्य ने परीक्षित की जन्म कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि जब राजा परीक्षित माता के गर्भ में थे, उसी समय अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग परीक्षित की मां उत्तरा के गर्भ पर किया।उन्होंने बताया कि उत्तरा ने भगवान श्री कृष्ण को पुकारा। भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ की स्वयं रक्षा की। जब परीक्षित पैदा हुआ, उसी समय वह उठकर बैठ गया। जो भी नवजात परीक्षित को उठकर अपनी गोद में बिठाने का प्रयास करता, वह उदास होकर बैठ जाता। लेकिन जैसे ही श्री कृष्ण ने नवजात परीक्षित को अपनी गोद में उठाया, जो वह जोर जोर से हंसने लगा। विद्वानों ने नवजात शिशु का नाम परीक्षित रखा क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं ही इस बच्चे की मां के गर्भ में रक्षा की थी।राजा बनने पर परीक्षित ने कलयुग को दंड देने का प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि कलयुग राजा परीक्षित की शरणागति हो गया है इसलिए उसे क्षमा कर दीजिए। कलयुग ने अपने रहने के स्थान को मांगा तो राजा ने चार स्थान दिए। पहला स्थान जुआ क्रीड़ा, दूसरा शराब खाना, तीसरा वैश्य स्थल दिए। तीनों स्थानों के बारे में सुनकर कलयुग ने राजा परीक्षित से कोई अच्छा स्थान प्रदान करने को कहा। इस पर राजा द्वारा भूल से उनके मुख से चौथे स्थान का नाम सोना निकल गया।कुछ समय पश्चात राजा ने अपने पूर्वजों के मुकुटों को देखना चाहा तो एक मुकुट बहुत सुंदर था जिसको धर्मराज युधिष्ठिर ने छिपा कर रखा था। यह मुकुट जरासंध का था जिसको भीम छीन कर लाया था। राजा ने जैसे की उस सोने के मुकुट को पहना, कलयुग उसकी बुद्धि पर सवार हो गया। राजा जंगल में शिकार को खेलते हुए जंगल में स्थित शमीक ऋषि के आश्रम पहुंचा और अपना स्वागत करवाने को कहा। ऋषि शमीक ध्यान में थे। राजा की बुद्धि बिगड़ गई और उसने एक मरे को सांप को ऋषि के गले में डाल दिया। ऋषि के पुत्र को जैसे ही इस बारे में पता चला उसने तुरंत राजा को श्राप दे दिया कि सर्पो का पूर्वज तदाक सर्प तुम्हें सातवें दिन मार डालेगा।ध्यान भंग होने के बाद वह राजा को घर जाकर मुकुट उतारने के बाद पश्चात्ताप की अग्नि को महसूस करते हुए रोने लगा। उन्होंने कहा कि पाप एक व्यक्ति के जीवन को सही मार्ग से गलत मार्ग की ओर मोड़ देता है। उन्होंने कहा कि आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति को अच्छे व पुण्य के कार्य करने चाहिए। अच्छे कार्यो को करना ही प्रभु की सच्ची सेवा है। इस अवसर पर रघुवीर सिंह,मनोज सिंह,कमल प्रताप सिंह,श्यामल सिंह,अंकुर सिंह,रिंकू सिंह,विनोद,शिवम,राजन,ओमप्रकाश,मोहित आदि भक्तगण मौजूद रहे।

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