राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क मैलानी खीरी : सिध्दी विनायक पब्लिक स्कूल में चल रही ,श्रीमद् भागवत कथा में, वृंदावन धाम से पधारे हुए आचार्य श्याम बिहारी चतुर्वेदी ने द्वितीय दिन की कथा में, कहा महाराज परीक्षित को जब श्रृंगी ऋषि ने श्राप दे दिया तब वह सब कुछ त्याग करके गंगा तट पर पहुंचे गंगा तट पर पहुंचकर के उन्होंने देखा, अत्रि, भृगु, वशिष्ठ, पाराशर,कण्व,इत्यादि बहुत से ऋषियों को वहां देखकर के उनको प्रणाम करके, कहा कि महात्मन आप बताएं कि जिसकी मृत्यु निकट में है, उसको क्या करना चाहिए तथा सदा सर्वदा जीव को क्या करना चाहिए सभी ऋषियों ने कहा कि, आपको मृत्युंजय जाप करना चाहिए, किसी ने दुर्गा सप्तशती के बारे में बताया किसी ने अन्य सत्कर्म के बारे में बताया इन सबसे महाराज परीक्षित को संतुष्टि नहीं, मिली तब आंखें बंद करके भगवान का स्मरण करके बैठ गए उनके बैठने के बाद ही श्री शुकदेव जी अपनी समाधि को त्याग करके गंगा के पावन तट शुकताल में, बट बृक्ष की छाया के समक्ष पहुंचे जहां सभी ऋषि मुनि बैठे थे, श्री शुकदेव जी के पड-पड बाबा वशिष्ठ भी वहां बैठे थे, जैसे कि पूर्व में नाम लिया लेकिन किसी ने भी निर्णय नहीं ले पाया, परीक्षित समेत सभी ऋषि शुकदेव जी को देखकर के खड़े हो गए, खड़े होकर के परीक्षित ने यथा पूजा सामग्री के अनुसार पूजा अर्चना की उचित आसन दिया और उचित आसन देने के बाद हाथ जोड़कर के कहा भगवान आप कृपा पूर्वक हमारे जैसे क्षत्रिय पर के ऊपर कृपा पूर्वक अतिथि के रूप में पधारे हैं, आज आपको देखकर के हमारे पितृ देवता संतुष्ट हो गए हैं, आज ऐसा प्रतीत हो रहा है, कि हमारा भाग्य बदल गया है , क्योंकि आप जैसे महापुरुष का अगर किसी दर्शन प्राप्त हो जाए, तो सभी गृह शुध्द हो जाते है,दर्शन स्पर्श का मौका मिल जाए, उसकी तो बात ही कोई और है आज आपका दर्शन मात्र से ही मेरे सब संशय  दूर हो रहे हैं, फिर भी मेरे मन में जो प्रश्न है, उन्हें मैं करना चाहता हूं, मैं यह पूछना चाहता हूं कि जिसकी मृत्यु निकट में है उसे क्या करना चाहिए और सदा सर्वदा जीव को क्या करना चाहिए इन प्रश्नों को सुनकर के श्री शुकदेव स्वामी ने परीक्षित से कहा राजन, तुमने जो प्रश्न किया है, वह लोक कल्याण के लिए किया है आपका प्रश्न इतना उत्तम है इससे समस्त जीव मात्र का कल्याण होगा, और आपके मन में है कि जिसकी मृत्यु निकट में है, उसको क्या करना चाहिए  राजन देखिए किसी प्राणी पता नहीं है, कि हमारी मृत्यु कब है, सभी की मृत्यु निकट है, लेकिन प्राणी पड़ा हुआ है, कि मेरी मौत अभी नहीं आएगी मेरी मौत तो 90 वर्ष में आएगी, मेरी मौत तो 80 वर्ष में आएगी लेकिन यह नहीं पता है की मृत्यु कब किसकी आएगी तो व्यक्ति को यही समझना चाहिए कि मेरी तो मृत्यु निकट में ही है, अगर वह व्यक्ति ऐसा मानता है, तो सत्कर्म में लग जाना चाहिए,आप जैसे सब कुछ त्याग करके इस 45 वर्ष की अवस्था में आ गए हैं  


और मैं देख रहा हूं कि मैं निर्गुण निराकार की उपासना में लगा हुआ था, सगुण साकार की उपासना करने लगा था, आज आपकी इस दृढ़ संकल्प विश्वास को देखकर के मैं समाधि को त्याग करके आपकी समक्ष आया हूं, राजन तुम बड़े सौभाग्यशाली हो कि कम उम्र में ही तुम सत्संग कर रहे हो, इसलिए राजन तुम्हारा पहला कर्तव्य होता है, की आयु हर व्यक्ति की कम ही होती है, भगवान के भजन में जितनी आयु लग जाए उतनी श्रेष्ठ हो जाती है, अन्य कार्य में तो कितनी भी आयु लगा दीजिए पूरा जीवन चला जाता है, लेकिन जो सत्कर्म भागवत प्रेम में जीवन चला जाए वही श्रेष्ठ जीवन कहलाता है ,ऐसे विचार व्यास आसन पर बैठे आचार्य जी ने प्रकट किए हैं और सभी भक्त इस कथा को सुनकर के बड़े भाव विभोर हो गए हैं दूर-दूर से लोग कथा सुनने के लिए आ रहे हैं और आनंदित हो रहे है सुदूर से आए हुए अन्य नगर अध्यक्षों का मैलानी नगर अध्यक्ष श्रीमती कीर्ति माहेश्वरी एवं समाजसेवी भवानी शंकर माहेश्वरी ने सब का पका पहनकर सम्मान किया और सबका आभार प्रकट किया।




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