
राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज पुणे के राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) परिसर में प्रतिष्ठित पेशवा बाजीराव प्रथम की भव्य प्रतिमा का अनावरण किया। हम आपको बता दें कि NDA के त्रिशक्ति द्वार पर यह प्रतिमा स्थापित की गई है। प्रतिमा का अनावरण करने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “पेशवा बाजीराव के स्मारक के लिए सबसे उपयुक्त स्थान पुणे की राष्ट्रीय रक्षा अकादमी है। जहां से तीनों सेनाओं के सैनिक प्रशिक्षित होकर निकलते हैं।” उन्होंने कहा कि यहां पेशवा बाजीराव की मूर्ति लगने से उनके जीवन से प्रेरणा लेकर जब हमारे भविष्य के सेनानी जाएंगे तो मुझे विश्वास है कि कई सालों तक भारत की सीमाओं को कोई छूने का साहस नहीं कर सकता।”इस अवसर पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, राज्य मंत्रिमंडल के कई सदस्य और पेशवा परिवार के कुछ सदस्य भी उपस्थित थे। हम आपको बता दें कि महाराष्ट्र में इस समय पेशवा राजनीति गर्माई हुई है ऐसे में बाजीराव प्रथम की प्रतिमा का अनावरण होना एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम है। हम आपको यह भी बता दें कि कुछ दिन पहले भाजपा की राज्यसभा सांसद मेधा कुलकर्णी ने रेलवे अधिकारियों के साथ बैठक में मांग की थी कि पुणे रेलवे स्टेशन का नाम पेशवा बाजीराव प्रथम के नाम पर रखा जाए। उन्होंने तर्क दिया था कि देशभर में कई रेलवे स्टेशन व हवाई अड्डे स्थानीय ऐतिहासिक हस्तियों के नाम पर हैं, परंतु पुणे स्टेशन का ऐसा कोई ऐतिहासिक जुड़ाव नहीं है। हालांकि, इस मांग ने तब राजनीतिक रंग ले लिया था जब कुछ मराठा संगठनों ने अपना विरोध दर्ज कराया था। प्रदर्शनकारियों ने स्टेशन का नाम राजमाता जिजाबाई या सामाजिक सुधारक ज्योतिबा फुले के नाम पर रखने की मांग की। उधर, एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार ने इस मांग को लेकर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, “ऐसा लगता है कि मेधा कुलकर्णी अपने वरिष्ठ नेताओं के निर्देशों का पालन कर रही हैं।”हम आपको यह भी बता दें कि एक दिन पहले ही प्रतिमा अनावरण संबंधी समारोह को लेकर तब विवाद खड़ा हो गया था जब नवाब शादाब अली बहादुर (मस्तानी और बाजीराव के वंशज) ने समारोह के बहिष्कार की घोषणा की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्हें अंतिम क्षणों में आमंत्रण दिया गया और मुख्य मंच पर स्थान नहीं दिया गया। उन्होंने कहा, “यह मेरे पूर्वज बाजीराव प्रथम का अपमान है, इसलिए मैं इस आयोजन का बहिष्कार कर रहा हूं।”हम आपको बता दें कि पेशवा बाजीराव प्रथम (1700–1740) मराठा साम्राज्य के महानतम और सबसे सफल सेनापतियों में से एक माने जाते हैं। वे छत्रपति शाहू महाराज के प्रधानमंत्री (पेशवा) थे और अपनी असाधारण सैन्य रणनीति, युद्ध-कौशल और नेतृत्व के लिए प्रसिद्ध हुए। वह 1720 में मात्र 20 वर्ष की आयु में पेशवा बने थे और 1720 से 1740 तक उनके 20 साल के कार्यकाल में उन्होंने एक भी युद्ध नहीं हारा था। 1728 में उन्होंने निजाम-उल-मुल्क को हराया था, वह युद्ध आज भी रणनीतिक दृष्टि से अनोखा माना जाता है। साथ ही 1737 में उन्होंने दिल्ली पर चढ़ाई कर दी थी और मुगल सम्राट के दरबार में पहुंचकर उसकी प्रतिष्ठा को गहरी चोट दी थी। 1738 में उन्होंने भोपाल की संधि की थी जिसके तहत मुगलों और मराठों के बीच करार हुआ, जिससे मराठों का दबदबा स्थापित हुआ था। बाजीराव प्रथम ने ना सिर्फ मराठा साम्राज्य का उत्तर भारत में विस्तार किया था बल्कि मुगल सत्ता को झुका कर मराठों को राष्ट्रीय शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया था। साथ ही उन्होंने ‘हिंदवी स्वराज्य’ के विचार को उत्तर भारत में स्थापित किया था। 2015 में आई फिल्म बाजीराव मस्तानी ने उनके चरित्र को नई पीढ़ी तक पहुँचाया था। देखा जाये तो पेशवा बाजीराव प्रथम केवल एक योद्धा नहीं थे, बल्कि रणनीतिक सोच, व्यक्तिगत दृढ़ता और साहस के प्रतीक थे। उन्होंने मराठा शक्ति को उस ऊँचाई तक पहुँचाया, जहाँ से भारत के राजनैतिक परिदृश्य में मराठा साम्राज्य प्रमुख ताक़त बन गया। उनकी स्मृति आज भी प्रेरणा का स्रोत है— चाहे राजनीति हो, सेना हो या कूटनीति।