“बिहार चुनाव 2025 में पहली बार स्पष्ट दिखा कि मतदाता जाति से ऊपर उठकर सनातन, आस्था, सुशासन और सुरक्षा को आधार बनाकर वोट कर रहा है। छठ अपमान, महाकुंभ टिप्पणी, वक्फ विवाद और दिल्ली धमाके ने चुनावी ट्रेंड बदल दिया।”
अभयानंद शुक्ल
समन्वय संपादक — राष्ट्रीय प्रस्तावना मीडिया
लखनऊ। बिहार चुनाव के नतीजों ने इस बार एक बड़ा मनोवैज्ञानिक और सामाजिक बदलाव सामने रखा है—
बिहार का वोटर अब जाति से आगे निकल चुका है और “सनातन + सुशासन” के मुद्दे पर एकजुट हो रहा है।
फील्ड रिपोर्ट और वोटिंग ट्रेंड बताते हैं कि इस चुनाव में पहली बार बिहारी मतदाता ने साफ संदेश दिया—
“आस्था का अपमान नहीं चलेगा, सुशासन पसंद है, और जाति से ऊपर आस्था व सुरक्षा जरूरी है।”
छठी मैया और प्रयागराज महाकुंभ पर बयान भारी पड़े
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए छठी मैया का अपमान और लालू प्रसाद यादव द्वारा प्रयागराज महाकुंभ को “फालतू” कहना बिहारियों को बुरी तरह चुभा।
फील्ड सर्वे के अनुसार—
✔ जाति से ऊपर आस्था का मुद्दा चला,
✔ लोगों ने इसे सनातन की अवहेलना माना,
✔ और इसका सीधा लाभ NDA को मिला।
धीरेंद्र शास्त्री फैक्टर: ‘सनातन बचाओ’ अभियान का जबरदस्त असर
बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का बिहार में विशाल प्रभाव है।
उनकी कथा में चुनाव से पहले उमड़ी भारी भीड़ ने संकेत दे दिया था कि— सनातन की अपील पर वोटर एकजुट होगा।
शास्त्री के “सनातन बचाओ अभियान” ने ग्रामीण और सीमांचल क्षेत्रों में सीधे वोट शिफ्ट कराया।
दिल्ली धमाके ने बदल दिया सीमांचल का पूरा ट्रेंड
दूसरे चरण की वोटिंग से ठीक पहले हुए दिल्ली धमाके ने बिहार के सीमांचल में मतदान का रुख बदल दिया। हिंदू मतदाताओं में सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ी और इसका सीधा फायदा NDA को मिला।
इसके साथ-साथ तेजस्वी यादव का पुराना बयान—
“शहाबुद्दीन अमर रहें”
फिर वायरल हुआ और मुस्लिम कट्टरता का मुद्दा उभर आया। वक्फ कानून पर तेजस्वी ने खुद को भारी नुकसान पहुंचाया
तेजस्वी यादव का यह बयान—
“हम वक्फ संशोधन कानून को फाड़कर फेंक देंगे”
—हिंदू और यहां तक कि यादव समर्थकों को भी रास नहीं आया। नतीजा—
✔ यादव वोटों में बड़ी सेंध,
✔ सामान्य हिंदू वोट एकजुट,
✔ मुस्लिम वोटों का भी पूरा ट्रांसफर नहीं हो पाया।
मुस्लिम महिलाओं ने बदली तस्वीर: ‘लाभ बिना धर्म देखे मिला’
फील्ड रिपोर्ट के अनुसार—
सीमांचल और अन्य जिलों में मुस्लिम महिलाओं ने openly कहा—
“सरकार हमें धर्म पूछकर नहीं रोकती, योजनाएँ देती है… तो हम क्यों बदलें? हम उसी के साथ हैं जो काम करता है।”
- ये ट्रेंड पहले कभी नहीं देखे गए थे।
- बिहारी मतदाता अब जाति से ऊपर उठ रहा है
- बिहार के लोगों ने वोट डालकर साफ बताया—
- जाति महत्वपूर्ण है, लेकिन सबसे ऊपर नहीं
- काम, सुशासन और आस्था अब प्राथमिक मुद्दे हैं
- जाति की राजनीति करने वाले दलों को जनता ने सख्त संदेश दिया है
यही कारण है कि यादव समाज के वोट भी इस बार बड़ी संख्या में NDA को मिले। इस चुनाव ने यूपी और बंगाल की राजनीति भी हिला दी।
बिहार के नतीजों के बाद—
✔ यूपी में जातिवाद की राजनीति करने वाले दल परेशान,
✔ अखिलेश यादव ने इसे “SIR का खेल” कहा,
✔ चुनाव आयोग प्रक्रिया में आगे बढ़ चुका है,
✔ बंगाल में भी ममता बनर्जी चिंतित दिखाई दे रही हैं।
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