राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ । चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन ने आज भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार सुबह राष्ट्रपति भवन में एक संक्षिप्त समारोह में 67 वर्षीय राधाकृष्णन को शपथ दिलाई। लाल कुर्ता पहने राधाकृष्णन ने ईश्वर के नाम पर अंग्रेजी में शपथ ली। शपथ समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, कई राज्यों के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, कई केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे आदि शामिल हुए। पूर्व उपराष्ट्रपतियों- हामिद अंसारी, वेंकैया नायडू और जगदीप धनखड़ ने भी समारोह में शिरकत की। उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद धनखड़ पहली बार सार्वजनिक रूप से नजर आए। धनखड़ की उपस्थिति ने नई राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है और नये उपराष्ट्रपति की शपथ से ज्यादा चर्चा जगदीप धनखड़ के सार्वजनिक रूप से नजर आने की रही।हम आपको याद दिला दें कि धनखड़ का पद से हटना औपचारिक तौर पर “स्वास्थ्य कारणों” से जोड़ा गया था। किंतु शपथ समारोह में उनका सक्रिय और स्वस्थ नज़र आना इस तर्क को कमजोर करता है। प्रश्न यह उठता है कि अगर स्वास्थ्य ठीक है तो इस्तीफ़े की असली वजह क्या थी? क्या यह भाजपा नेतृत्व से मनमुटाव का परिणाम था या किसी राजनीतिक असहमति का? हम आपको बता दें कि जगदीप धनखड़ का राजनीतिक अंदाज़ हमेशा से टकराव और तीखे तेवर का रहा है। वकील की पृष्ठभूमि से आए धनखड़ ने संसद में भी उसी कानूनी धार और बहस की शैली को बनाए रखा था। उपराष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने विपक्ष को कठघरे में खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन कुछ मौकों पर सरकार से भी उनकी दूरी और असहमति स्पष्ट हुई थी। यही कारण है कि उनका व्यक्तित्व भाजपा के भीतर भी कभी “सशक्त पक्षधर” और कभी “मुश्किल सहकर्मी” के रूप में देखा गया।उनकी यही आक्रामकता और बेबाकी उन्हें विशिष्ट बनाती है। मगर यह शैली सत्ता की राजनीति में लंबे समय तक सबको सहज नहीं कर पाती। शायद यही कारण रहा कि उनका कार्यकाल बीच में ही रुक गया। शपथ समारोह में धनखड़ भाजपा नेताओं से ज़रूर मिले, लेकिन पुरानी वाली आत्मीयता नज़र नहीं आई। यह संकेत साफ़ है कि संबंधों में दरार बनी हुई है। ऐसे में सवाल है— अब उनका राजनीतिक भविष्य किस दिशा में जाएगा?देखा जाये तो धनखड़ के पास अनुभव और पहचान दोनों हैं। वह चाहें तो भाजपा के भीतर वापसी की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन यदि दूरी बनी रहती है तो वह एक स्वतंत्र और वैचारिक चेहरा बनकर भारतीय राजनीति में अपनी भूमिका तलाश सकते हैं। विपक्ष के लिए भी वह “सत्ता से असहमति जताने वाले संवैधानिक पदाधिकारी” की छवि के चलते उपयोगी साबित हो सकते हैं।बहरहाल, जगदीप धनखड़ का सार्वजनिक जीवन से गायब होना जितना रहस्यमय था, उनकी वापसी भी उतनी ही चर्चित रही। उनकी उपस्थिति ने यह जता दिया कि उनका राजनीतिक सफ़र समाप्त नहीं हुआ है। आगे का रास्ता इस बात पर निर्भर करेगा कि वह भाजपा नेतृत्व से तालमेल बैठाते हैं या एक स्वतंत्र मार्ग चुनते हैं। लेकिन इतना तय है कि उनकी बेबाक और टकरावपूर्ण शैली भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय बनी रहेगी।

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