पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ा एक अहम राजनीतिक किस्सा सामने आया है। यह जानकारी पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी  के मीडिया सलाहकार अशोक टंडन ने अपनी किताब ‘अटल संस्मरण’ में साझा की है। किताब में बताया गया है कि वर्ष 2002 में राष्ट्रपति चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के भीतर वाजपेयी को राष्ट्रपति बनाने और लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री बनाने का सुझाव दिया गया था।

हालांकि, अटल बिहारी वाजपेयी ने इस प्रस्ताव को तुरंत अस्वीकार कर दिया। उनका मानना था कि किसी लोकप्रिय प्रधानमंत्री का बहुमत के बल पर राष्ट्रपति बनना भारत की संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सही नहीं होगा। वाजपेयी का विचार था कि इससे एक गलत राजनीतिक परंपरा शुरू हो सकती है।

सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुनने की पहल

किताब के अनुसार, वाजपेयी ने इसके बाद राष्ट्रपति पद के लिए सर्वसम्मति बनाने की दिशा में कदम उठाया। उन्होंने विपक्षी दल कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के साथ बैठक की। इस बैठक में सोनिया गांधी, प्रणब मुखर्जी और डॉ. मनमोहन सिंह मौजूद थे। इसी बैठक में वाजपेयी ने पहली बार यह जानकारी दी कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का फैसला किया है। प्रस्ताव सुनते ही बैठक में कुछ देर के लिए खामोशी छा गई।

सोनिया गांधी की प्रतिक्रिया

किताब में बताया गया है कि सोनिया गांधी ने इस फैसले पर हैरानी जताई, लेकिन कहा कि वह इस पर विचार करने के बाद अंतिम निर्णय लेंगी। बाद में विपक्ष ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को 2002 में भारत का 11वां राष्ट्रपति चुना गया। उन्होंने 2007 तक यह पद संभाला।

वाजपेयी-आडवाणी की मजबूत राजनीतिक साझेदारी

अशोक टंडन ने किताब में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के रिश्तों का भी उल्लेख किया है। उनके अनुसार, कुछ मतभेदों के बावजूद दोनों नेताओं के बीच आपसी सम्मान और भरोसा कभी कम नहीं हुआ। आडवाणी वाजपेयी को अपना नेता और प्रेरणा मानते थे, जबकि वाजपेयी उन्हें अपना भरोसेमंद साथी कहते थे।

संसद हमले से जुड़ा भावुक प्रसंग

किताब में 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमले का भी जिक्र है। उस दिन सोनिया गांधी ने वाजपेयी को फोन कर उनकी सुरक्षा की चिंता जताई थी। जवाब में वाजपेयी ने कहा था कि वह सुरक्षित हैं और उन्होंने सोनिया गांधी से भी अपना ध्यान रखने को कहा। किताब में दर्ज ये घटनाएं अटल बिहारी वाजपेयी के लोकतांत्रिक मूल्यों, राजनीतिक संतुलन और मानवीय संवेदनाओं को दर्शाती हैं।

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