राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क। महाराष्ट्र विधानसभा ने एक महत्वपूर्ण और बहुचर्चित विधेयक पारित किया है, जो ‘अर्बन नक्सल’ (Urban Naxal) गतिविधियों से निपटने के उद्देश्य से लाया गया है। इस विधेयक को राज्य की आंतरिक सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के एक कदम के रूप में देखा जा रहा है। इस पहल के पीछे राज्य सरकार की मंशा है कि शहरी क्षेत्रों में छिपे, पढ़े-लिखे, प्रभावशाली लेकिन राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में लिप्त तत्वों पर कानूनी शिकंजा कसा जाए।क्या है ‘अर्बन नक्सल’ विधेयक? यदि इसकी बात करें तो आपको बता दें कि इस विधेयक के अंतर्गत उन व्यक्तियों, संगठनों या नेटवर्क को निशाना बनाया गया है, जो नक्सली विचारधारा को शहरी क्षेत्रों में फैलाने, उसे बौद्धिक समर्थन देने, या शहरी युवाओं को उग्रवाद की ओर मोड़ने का कार्य करते हैं। विधेयक में राष्ट्र-विरोधी साहित्य के प्रचार, वामपंथी उग्रवाद को समर्थन और हिंसा की योजना बनाने जैसे कृत्यों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इसके अलावा, सुरक्षा एजेंसियों को जांच, निगरानी और गिरफ्तारी के लिए विस्तृत अधिकार दिए गए हैं। यदि कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष हिंसा में शामिल न होकर भी नक्सली विचारधारा का समर्थन करता पाया जाता है, तो भी उसे कानूनी प्रक्रिया के तहत दोषी ठहराया जा सकता है। इसके अलावा, डिजिटल माध्यमों पर उग्र विचारधारा के प्रसार को भी दंडनीय अपराध घोषित किया गया है। इस विधेयक की आवश्यकता क्यों पड़ी? यदि इस पर विचार करें तो आपको बता दें कि हाल के वर्षों में महाराष्ट्र, विशेषकर मुंबई, पुणे, नागपुर जैसे शहरों में यह देखा गया कि कुछ बौद्धिक संस्थानों, एनजीओ, साहित्यिक मंचों के माध्यम से नक्सली विचारधारा को एक वैचारिक संरक्षण मिल रहा है। इसके अलावा, भीमा-कोरेगांव हिंसा (2018) और उससे जुड़े मामलों में कई ‘अर्बन नक्सल’ कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी ने इस खतरे को रेखांकित किया।इसके अलावा, जब हिंसा, वर्ग संघर्ष और व्यवस्था विरोधी विचारों को शहरी युवाओं और छात्रों में फैलाया जाता है, तो यह लोकतंत्र, कानून और संविधान के लिए खतरा बन सकता है। साथ ही ग्रामीण नक्सल हिंसा प्रत्यक्ष होती है, लेकिन शहरी नक्सलवाद अदृश्य और वैचारिक होता है। यह व्यवस्था को भीतर से खोखला करने की प्रक्रिया में कार्य करता है।विधेयक के महत्व और प्रभाव पर गौर करें तो आपको बता दें कि इससे सुरक्षा एजेंसियों को ठोस कानूनी आधार मिलेगा जिससे वे केवल हिंसा करने वालों पर नहीं, बल्कि उसे प्रेरित करने वालों पर भी कार्रवाई कर सकें। साथ ही शहरी क्षेत्रों में छिपे संगठनों और नेटवर्क को चिन्हित कर उन पर निगरानी और दमनात्मक कार्रवाई की जा सकेगी। यह विधेयक राज्य की आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा और प्रचार के माध्यम से होने वाले वैचारिक आतंकवाद को नियंत्रित करने में मददगार होगा। साथ ही इस विधेयक से युवाओं को भ्रमित करने वाले छद्म बौद्धिक एजेंडे पर भी लगाम लगेगी। हम आपको बता दें कि गृह विभाग का भी प्रभार संभाल रहे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र विशेष जन सुरक्षा विधेयक सदन में पेश किया था। फडणवीस ने कहा कि राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों की संयुक्त प्रवर समिति द्वारा संशोधनों के साथ इसे मंजूरी दी गई थी। उन्होंने आश्वासन दिया कि इस कानून का दुरुपयोग नहीं किया जाएगा। विपक्षी दलों ने विधेयक के कुछ पहलुओं पर आपत्ति जताई थी, जिसमें ‘‘अर्बन नक्सल’’ शब्द की व्यापक व्याख्या का दावा भी शामिल है। फडणवीस ने कहा कि राज्य और देश की सुरक्षा महत्वपूर्ण है तथा लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ काम करने वाले संगठनों की गतिविधियों पर अंकुश लगाना समय की मांग है। उन्होंने कहा, ‘‘शक्ति का दुरुपयोग नहीं होगा। यह एक संतुलित कानून है तथा तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और झारखंड में लागू कानूनों से कहीं अधिक प्रगतिशील है।’’मुख्यमंत्री ने कहा कि संयुक्त प्रवर समिति के किसी भी सदस्य ने विधेयक के खिलाफ कोई असहमति नहीं व्यक्त की। विधेयक पेश करते हुए, फडणवीस ने कहा कि इसका अंतिम मसौदा तैयार करते समय लोगों से प्राप्त 12,500 से अधिक सुझावों पर विचार किया गया। विधेयक में एक ‘सलाहकार बोर्ड’ का प्रावधान किया गया है, जिसके अध्यक्ष उच्च न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे तथा एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश और उच्च न्यायालय का एक सरकारी वकील इसके सदस्य होंगे। बहरहाल, जहां एक ओर यह विधेयक सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक माना जा रहा है, वहीं कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता और विपक्षी दल इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नियंत्रण के रूप में देख रहे हैं। उनका तर्क है कि कहीं ऐसा न हो कि असहमति जताने वाले नागरिकों को “अर्बन नक्सल” कहकर अनावश्यक रूप से प्रताड़ित किया जाए। कुल मिलाकर देखा जाये तो महाराष्ट्र का ‘अर्बन नक्सल’ विधेयक एक साहसिक और रणनीतिक कदम है जो राज्य को वैचारिक और गुप्त उग्रवादियों से मुक्त करने की दिशा में उठाया गया है। यह कानून न केवल महाराष्ट्र, बल्कि पूरे भारत के लिए सुरक्षा और लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा का मॉडल बन सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *