इन दिनों देश की राजधानी दिल्ली में सांसों पर ‘जहर’ की कब्जेदारी है। सांसों के इस संकट से उबरने के लिए तमाम प्रयास जारी हैं, लेकिन फिलहाल राहत नजर नहीं आ रही। इसी बीच AQI.IN की एक रिपोर्ट आई है, जो काफी डराने वाली है। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की हवा में सांस लेने का मतलब है रोजाना 14 सिगरेट पीना। इससे साफ पता चलता है कि राजधानी की हवा कितनी जहरीली हो चुकी है।

देश के कई बड़े शहरों में हवा लगातार खराब या जहरीली होती जा रही है। AQI.IN ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया कि दिल्ली की हवा सबसे ज्यादा खतरनाक है। रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, देश की राजधानी में PM2.5 का स्तर कई दिनों से 300 µg/m³ के आसपास है। अंतरराष्ट्रीय मॉडल के अनुसार, 22 µg/m³ PM2.5 = 1 सिगरेट माना जाता है।

अन्य शहरों की स्थिति
इस हिसाब से दिल्ली का हर आम नागरिक बिना सिगरेट पिए रोजाना लगभग 13 से 14 सिगरेट के बराबर प्रदूषण सांसों के माध्यम से ग्रहण कर रहा है। अन्य शहरों की बात करें तो मुंबई की स्थिति भी अच्छी नहीं है। यहां औसत PM2.5 स्तर 80-90 µg/m³ है, यानी यहां इंसान रोजाना 4 सिगरेट के बराबर प्रदूषण ले रहा है।

बेंगलुरु में औसत PM2.5 50 µg/m³ है, जो कि रोजाना 2 से 3 सिगरेट के बराबर होता है। चेन्नई में औसत PM2.5 40 µg/m³ है, यानी रोजाना 2 सिगरेट के बराबर प्रदूषण। 22 µg/m³ PM2.5 की रोजाना एक्सपोज़र को एक रिसर्च में 1 सिगरेट के बराबर माना गया है। इसका उद्देश्य लोगों को बताना है कि हवा में घुला जहर कितना गंभीर है। लंबे समय तक इस हवा में रहने से फेफड़ों की बीमारियां, दिल की समस्याएं और जीवनकाल कम होने का खतरा बढ़ जाता है।

दिल्ली की हवा इतनी खराब क्यों है?

दिल्ली की हवा की स्थिति खराब होने के पीछे कई कारण हैं:

शहर में बढ़ते वाहन और इंडस्ट्रियल धुआं

सर्दियों में धुआं जमीन के पास फंस जाना

पड़ोसी राज्यों में पराली जलना

दिल्ली का समुद्र से दूरी

मुंबई और चेन्नई में हवा बेहतर क्यों है?

मुंबई और चेन्नई में हवा की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है। समुद्री हवाएं और हवा में नमी प्रदूषण को फैलने से रोकती हैं, जिससे हवा अपेक्षाकृत साफ रहती है।

देश के शहरों का कड़वा सच
AQI.IN के अनुसार, देश का कोई भी बड़ा शहर WHO की सुरक्षित सीमा (5 µg/m³) के करीब नहीं है। यानी हर शहर का नागरिक रोज कुछ ना कुछ सिगरेट जैसी हवा सांस के जरिए अंदर ले रहा है। AQI.IN के प्रवक्ता का कहना है कि वे बर्कली अर्थ के अंतरराष्ट्रीय मानक का इस्तेमाल करते हैं। उनका उद्देश्य लोगों को डराना नहीं, बल्कि प्रदूषण की गंभीरता को समझाना है।

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