राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ । उत्तर प्रदेश की राजनीति एक प्रयोगशाला है जिसमें जात, धर्म, सांप्रदाय लगभग हर तरह के राजनीतिक समीकरण पर प्रयोग होता है। साल 2014 का लोकसभा चुनाव, 2017 का विधानसभा चुनाव, 2019 का लोकसभा चुनाव के नतीजों ने एक बात तो साफ ही कर दिया की यूपी में योगी के टक्कर का कोई नहीं। योगी आदित्यनाथ को बीजेपी का फायर ब्रांड नेता माना जाता है। पीडीए यानी की पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक फॉर्मूले के सहारे लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी को पछाड़ दिया था। इस चुनाव में सपा 37 लोकसभा सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। लेकिन अब उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बहाने बीजेपी मिशन-2027 का आगाज करने जा रही है।मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कल्याण सिंह की चौथी पुण्यतिथि पर 21 अगस्त को अलीगढ़ में बीजेपी एक बड़ा कार्यक्रम करने जा रही है। इस कार्यक्रम में सीएम योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान सहित दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक शामिल होंगे। वक्त ऐसा भी था जब उत्तर प्रदेश की सियासत में कल्याण सिंह की तूती बोलती थी। कल्याण सिंह का जन्म पांच जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ की अतरौली तहसील के मढ़ौली गांव में हुआ। कल्याण सिंह के एक पुत्र और एक पुत्री हैं। उनके पुत्र राजवीर सिंह बीजेपी से एटा से सांसद रह चुके है।अब कल्याण सिंह की पुण्यतिथि को बीजेपी हिंदू गौरव दिवस के रूप में मना रही है। इसके साथ ही बीजेपी उत्तर प्रदेश में दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने और अखिलेश के पीडीए फार्मूले को काउंटर करने की कवायद में लगी है। 21 अगस्त को आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में 80 हजार से अधिक लोगों को एकत्रित करने की योजना बनी है। जिसके लिए कल्याण सिंह के प्रभाव वाले 40 जनपदों के साथ-साथ प्रदेश भर से लोग पहुंचेंगे। बाबरी के विवादित ढांचे के विध्वंस प्रकरण के लिए कल्याण सिंह को जिम्मेदार माना गया। कल्याण सिंह ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन दूसरे ही दिन केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश को बर्खास्त कर दिया। उस वक्त त्यागपत्र देने के बाद कल्याण सिंह ने कहा था कि ये सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ। ऐसे में सरकार राममंदिर के नाम पर कुर्बान हुई। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक उनकी राजनीति का दूसरा चेहरा मंडल और मंदिर के बीच संतुलन साधने का था। मंडल फैसले से राजनीति जातीय खांचों में बंटी, तब उन्होंने पिछड़ों-दलितों को भाजपा से जोड़कर ‘सोशल इंजीनियरिंग’ का नया अध्याय लिखा। इससे भाजपा का जनाधार व्यापक हुआ और वे हिंदुत्व के साथ सामाजिक समीकरणों के शिल्पकार भी बने।

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