
दिनेश दुबे(कन्नौज) : उत्तर प्रदेश के कन्नौज का मूल कारोबार देशी इत्र का निर्माण और उसकी बिक्री है ! यहां का इत्र कारोबार सदियों पुराना है। शायद इसी लिहाज से कन्नौज को “इत्र नगरी” ही नहीं, बल्कि “इत्र की राजधानी” भी कहा जाता है। कन्नौज के मूल कारोबार “देशी इत्र” निर्माण के साथ ही यहां सहयोगी कारोबार के रूप में गुलाब जल, केवड़ा जल, गुलकंद, अगरबत्ती, धूपबत्ती, हवन सामग्री, चंदन की लकड़ी के मुट्ठे सहित कई अन्य सुगंधित उत्पादों का निर्माण भी बड़े पैमाने पर होता है। फूल, फल, पत्तियों और जड़ी- बूटियों से आसवन विधि द्वारा निर्मित देशी इत्र के साथ ही यहां के अन्य सुगंधित उत्पादों का बाजार सिर्फ अपना देश भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व है ! जिसके जरिए बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा सरकार के कोष में आती है ! किंतु खेद का विषय ये है कि देश की सत्ता पर काबिज़ वर्तमान सरकार और उसके राजनेता विपक्ष से प्रतिद्वंदिता के चलते कन्नौज के इत्र कारोबार और इत्र कारोबारियों को बढ़ावा अथवा संरक्षण देने के बजाय सदियों पुराने पुस्तैनी कारोबार को ठप्प करने और दलगत राजनीति के आधार पर इत्र कारोबारियों का उत्पीड़न करने पर उतारू हैं।
यूपी के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी से सरकार के राजनैतिक विद्वेष की अगर किसी व्यक्ति को झांकी देखनी हो, तो उसे ऐतिहासिक नगरी कन्नौज का एक बार भ्रमण जरूर करना चाहिए ! पौराणिक काल से विख्यात कन्नौज नगर देश के सबसे बड़े राष्ट्रीय राजमार्ग जी टी रोड “ग्रांड ट्रंक रोड” अर्थात शेरशाह सूरी मार्ग के साथ ही कानपुर- कासगंज रेलवे लाइन पर स्थित है ! करीब चार लाख की आबादी वाला यह नगर छोटा ही सही, किंतु इस समय भी पूरे विश्व में “इत्र नगरी” के नाम से विख्यात है ! केंद्र व राज्य सरकार का इस नगर तथा जिले की जनता के साथ ही इसके नाम, पौराणिक व ऐतिहासिक विरासत के अलावा यहां के सदियों पुराने इत्र कारोबार व कारोबारियों से कितना विद्वेष है ? इस बात का अंदाजा सिर्फ और सिर्फ तभी लगाया जा सकता है जब कोई व्यक्ति खुद यहां आकर इसकी ज़मीनी हकीकत देखे ! क्योंकि स्वर्णिम इतिहास वाले कन्नौज नगर को सदियों बाद 27 साल पहले जब जिला मुख्यालय के रूप में पुनः पहचान मिली, तो यह नगर डेढ़ दशक तक बिना किसी रुकावट के दौड़ता रहा ! इस दौरान जिले के रूप में कन्नौज ने गांव की गलियों से निकलकर संपर्क मार्गो, पुल- पुलियों, अस्पतालों और चिकित्सा शिक्षा के साथ ही उच्चतम तकनीकी शिक्षा के विभिन्न संस्थानों की स्थापना से लेकर अंतरराष्ट्रीय तकनीकी युक्त सबसे तेज गति और उच्च गुणवत्ता के निर्धारित मानकों से निर्मित “आगरा- लखनऊ एक्सप्रेस वे” के सफर को तेजी से तय किया ! अगर ये कहा जाए तो कतई गलत न होगा कि आज से दशक भर पहले और जिला बनने के बाद डेढ़ दशक तक विकास के पथ पर जिस गति से कन्नौज जनपद दौड़ा, उसकी गति के आस पास देश का कोई भी जिला नहीं पहुंचा! इस बीच यहां के सदियों पुराने और पुस्तैनी इत्र कारोबार को भी बाज जैसे पंख मिले !
किंतु खेद का विषय ये है कि फल, फूल, पत्तियों और जड़ी बूटियों से ही नहीं बल्कि “मिट्टी” से भी उसकी “सोंधी सुगंध” को कांच की शीशी में भर लेने की अनूठी कला के कारीगर कन्नौजवासी इन दिनों अंदर ही अंदर मायूस हैं ! मायूसी के साथ ही उनकी बेबसी का आलम ये है कि इस लेखक के समक्ष भी कोई अपना पक्ष रखने को तैयार नहीं है ! जिसकी मुख्य वजह ये है कि उनकी बात सत्ता और सरकार के विपक्ष की है ! छोटे से “कलमकार” के रूप में अपनी “कर्मभूमि” कन्नौज की जो दशा मै स्वयं देख रहा हूं, उसे लिखते समय पीड़ा एवं निराशा हो रही है ! क्योंकि पौराणिक काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक इस नगर को सदियों तक पूरे उत्तर भारत की राजधानी रहने का गौरव प्राप्त रहा है। देश के अन्य पौराणिक व ऐतिहासिक नगरों की अपेक्षा यह नगर विदेशी आक्रांताओं के तमाम हमले झेलने के बाद भी अपने वजूद को बचाए रखने में सफल है ! यही नहीं इस नगर के लोग हमेशा की तरह आज भी उदार भाव से “अतिथि देवो भव” की तर्ज पर मेहमानों का हृदय से स्वागत- सत्कार करते हुए वैदिक परम्परा का पालन करते हैं। बावजूद इसके यहां के लोगों को आज भी कलंकित होकर जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। वर्तमान सरकार का नारा “सबका साथ, सबका विकास” कन्नौज के लिए थोथा साबित हो रहा है ! जिसके चलते न सिर्फ कन्नौज जिले का आम जन मानस खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है बल्कि कन्नौज का सदियों पुराना इत्र व्यवसाय भी चौपट होता जा रहा है ! क्योंकि वर्तमान सरकार कन्नौज के इत्र निर्माताओं व व्यवसायियों को सुविधा और संरक्षण देने के बजाय उन्हें तरह- तरह से प्रताड़ित करने पर उतारू है !
यह बात अलग है कि कन्नौज नगर अथवा उसके आस- पास न तो चंदन के पेड़ होते हैं और न ही केवड़ा की खेती होती है। गुलाब और गेंदे की खेती भी कन्नौज में उतनी नहीं होती, जितनी यहां के इत्र व्यवसायियों की आवश्यकता है। इसके बावजूद कन्नौज के इत्र कारोबारी देश के अन्य जनपदों व प्रदेशों में जाकर चंदन की लकड़ी, गुलाब, केवड़े और गेंदे के फूल की खरीद करके इत्र कारोबार से जुड़े इन प्रमुख उत्पादों का बड़े पैमाने पर निर्माण तथा व्यापार करते हैं ! देखा जाए तो इत्र कारोबार में चंदन की लकड़ी का तेल ही वह मुख्य अवयव होता है, जिस पर किसी भी फल, फूल, पत्ती, छाल अथवा वनस्पति की खुशबू को संरक्षित करते हुए इत्र का निर्माण किया जाता है ! देशी चंदन की लकड़ी से आसवन विधि द्वारा निकाले गए तेल पर वाष्पन विधि से आसवित की गई किसी भी वनस्पति की सुगंध वाले इत्र की कीमत सर्वाधिक होती है !
कन्नौज के मूल निवासियों अथवा यहां की सदियों पुरानी पद्वति से निर्मित देशी इत्र सिर्फ भारत देश में ही नहीं बल्कि विश्व भर के देशों में पूजा- अर्चना के लिए श्रेष्ठ माना जाता है ! दुर्लभ जड़ी- बूटियों और प्राकृतिक सम्पदा से शुद्धता के साथ निर्मित जीव- जंतु के हड्डी- मांस व चर्बी अथवा केमिकल रहित होने के कारण विश्व के सभी धर्मावलंबी कन्नौज के देशी इत्र को शुद्ध सुगंध के रूप में प्रयोग करते हैं ! यहां के प्रमुख इत्र “केवड़ा” व केवड़ा जल को मिठाइयों और पकवानों के साथ ही शरबत तथा पेय उत्पादों में प्रयोग करने के अलावा प्रसाद व पूजन में भी शामिल किया जाता है ! इत्र गुलाब और गुलाब जल का उपयोग भी इत्र केवड़ा की तरह ही किया जाता है। कन्नौज के दूसरे और ठंडी तासीर वाले प्रमुख इत्र उत्पाद “खस” को भी इत्र केवड़ा की तरह ही प्रयोग किया जाता है ! बंजर जमीन में स्वता उगने वाली खस भी कन्नौज नगर व जिले की खेती में नहीं उगती है, उसे भी यहां के इत्र कारोबारी बाहर के जिलों से खुद ही खुदवाकर लाते हैं और फिर उसका इत्र तैयार करते हैं। जबकि तीसरे और गर्म तासीर वाले प्रमुख इत्र उत्पाद “शमामा” को खाने वाली तम्बाकू को तीखा और सुगंधित बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। गरम तासीर वाले इत्र “शमामा” का उपयोग सुगंध के लिए अरब देशों के लोग सर्वाधिक करते हैं ! इसके अतिरिक्त यहां निर्मित होने वाले प्रमुख देशी इत्रों में बेला, गुलाब गेंदा, चमेली और केतकी का प्रयोग विभिन्न सौंदर्य उत्पादनों एवं विलासिता के प्रसाधन निर्माण में होता है !