राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चलाई गई आक्रामक ट्रेड वॉर नीति, खासकर चीन के खिलाफ, भले ही अमेरिका को व्यापारिक दबाव बनाने का साधन लगी हो, लेकिन इसका अप्रत्याशित फायदा भारत जैसे विकासशील देशों को मिला। चीन पर लगाए गए भारी टैरिफ और सप्लाई चेन पर पड़े दबावों के कारण कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने चीन से बाहर निकलने की रणनीति बनाई — और भारत उनके लिए एक आकर्षक विकल्प बनकर उभरा।

चीन से हटकर भारत की ओर रुख

2018-19 में जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध अपने चरम पर था, तब Apple, Samsung, Foxconn और Nike जैसी बड़ी कंपनियों ने वैकल्पिक मैन्युफैक्चरिंग लोकेशन के रूप में भारत और वियतनाम को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी। भारत सरकार की “मेक इन इंडिया” और “प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI)” जैसी योजनाओं ने इस रुझान को और बल दिया।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका की नीतियां अधिक सहयोगात्मक होतीं, तो वैश्विक व्यापार में उसका नेतृत्व और प्रभाव और मजबूत हो सकता था। लेकिन ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों ने कई देशों को अमेरिका की नीतिगत स्थिरता पर सवाल उठाने को मजबूर किया।

अमेरिका की वैश्विक साख पर असर

ट्रंप प्रशासन की “America First” नीति ने न केवल चीन बल्कि यूरोपीय देशों, कनाडा और भारत तक के साथ व्यापारिक रिश्तों में तनाव पैदा किया। WTO जैसे वैश्विक संस्थानों की भूमिका को कम आंकने की नीति ने अमेरिका की बहुपक्षीय नेतृत्व क्षमता को भी चुनौती दी।

इसके परिणामस्वरूप, अमेरिका को न केवल आर्थिक मोर्चे पर आलोचना झेलनी पड़ी बल्कि उसके दीर्घकालिक साझेदारों ने भी वैकल्पिक रणनीतियों पर विचार शुरू किया।

भारत के लिए अवसर, लेकिन चुनौतियाँ भी

हालांकि भारत को निवेश आकर्षित करने में फायदा मिला है, लेकिन अधोसंरचना, लॉजिस्टिक्स, श्रम कानूनों और ब्यूरोक्रेसी जैसी चुनौतियाँ अब भी मौजूद हैं। यदि भारत इन क्षेत्रों में सुधार करता है, तो वह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक स्थायी और प्रमुख स्थान बना सकता है।

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