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उत्तर प्रदेश भाजपा के नये अध्यक्ष पंकज चौधरी द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पैर छूने की घटना से सियासी चर्चाएं तेज हो गई हैं। गोरखपुर की स्थानीय राजनीति में योगी और पंकज चौधरी के संबंधों को लेकर पहले से चल रही अटकलों के बीच यह तस्वीर कई राजनीतिक संदेश दे रही है।

  • प्रदेश में भाजपा के नये अध्यक्ष पंकज चौधरी ने योगी के पैर छुए तो चर्चाओं का बाजार गर्म
  • गोरखपुर की स्थानीय राजनीति में योगी और पंकज में सम्बन्ध अच्छे न होने की चर्चाएं
  • योगी आदित्यनाथ की मर्जी के बिना क्षेत्रीय राजनीति में नहीं पनप पाया कोई भाजपाई

अभयानंद शुक्ल
समन्वय सम्पादक

लखनऊ। इतिहास गवाह है कि गोरखपुर की राजनीति में योगी आदित्यनाथ की मर्जी के बिना कोई भाजपाई पनप नहीं पाया। गोरखपुर की राजनीति में वही हुआ जो योगी ने चाहा। चाहें वह राधामोहन दास अग्रवाल हों, शिवप्रताप शुक्ल हों, या फिर उपेन्द्र शुक्ल, जो भी योगी की आंखों में खटका वह राजनीति में हाशिए पर चला गया। ये अलग बात है कि उन्हें केंद्र की कृपा मिली तो थोड़ा खड़ा होने का मौका मिल गया, लेकिन गोरखपुर की राजनीति में नहीं बढ़ पाया। पंकज चौधरी के अध्यक्ष बनने के बाद पैर छूने के बाद भी लोग कह रहे हैं कि ये दूसरे एके शर्मा साबित होंगे, क्योंकि पैर तो एके शर्मा ने भी छुए थे। लेकिन जिस काम के लिए एके शर्मा उत्तर प्रदेश लाए गए थे, वह मुकाम आज भी एक शर्मा को नहीं मिल पाया। योगी को जानने वाले लोग यही कहते हैं कि योगी वटवृक्ष हैं, इसलिए उनके नीचे कोई पेड़-पौधा पनप नहीं सकता।

प्रदेश के नये भाजपा अध्यक्ष पंकज चौधरी ने पद ग्रहण करने के बाद जब सीएम योगी के पैर छुए तो सब भौंचक रह गए। एक तो भाजपाई संस्कार में पार्टी अध्यक्ष मुख्यमंत्री से सीनियर माना जाता है, और दूसरा क्षेत्रीय राजनीति में दोनों के बीच सम्बन्ध सामान्य न होने की खबरें। इसके बाद से लोग ये सवाल पूछने लगे हैं कि पैर तो छुए, आशीर्वाद भी मिला क्या? लोग कहने लगे हैं कि आने वाले समय में प्रदेश भाजपा की राजनीति में कुछ बड़ा होने के संकेत हैं। ये बात सभी जानकार मानते हैं कि आगे चलकर योगी और पंकज के बीच सम्बन्ध सामान्य नहीं रहने वाले हैं।

उनका मानना है कि यह असली पिक्चर नहीं है। पंकज चौधरी ने अध्यक्ष के रूप में पार्टी का झंडा संभालने के बाद सबसे पहले सीएम योगी आदित्यनाथ के पैर छुए। वैसे तो सौहार्द दिखाने और किसी मठाधीश के पैर छूने के लिहाज से कदम अच्छा है, पर पार्टी के प्रोटोकॉल में इसे अनुचित कहा जा रहा है। भाजपा में संगठन को सत्ता से ऊपर कहा जाता है। और इस बात को लोकसभा चुनाव हारने के बाद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने पार्टी मंचों पर और बाहर भी ज़ोर शोर से उठाया था। इसे लेकर योगी और केशव में तल्खियां भी दिखीं थी। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने इस पर खूब मजे भी लिए थे। ऐसे में मंच पैर छूने पर सवाल उठ रहे हैं। यानी फिलहाल तो हार्मनी दिखाई गई, पर कितने दिनों तक रहेगी महत्वपूर्ण यही सवाल है। सवाल यह भी है कि क्या यह निर्णय सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के दबाव में हुआ है या फिर योगी को दबाने के लिए हुआ है।

अंदरखाने खबर यही है कि महाराजगंज के सांसद पंकज चौधरी के परिवार का गोरखनाथ पीठ से कोई ऐसा संबंध नहीं रहा है, जो बहुत अच्छा कहा जाए। लोकल राजनीति में दोनों दो ध्रुव बताए जाते हैं। राजनीति में वैसे भी संकेतों की भाषा ही अधिक चलती है। महाराजगंज जिले में पंकज के परिवार का दबदबा बताया जाता है। पंकज चौधरी के साथ खास बात यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब एक बार गोरखपुर दौरे पर थे तो उनके घर भी गए थे और यहीं से चर्चाओं का बाजार गर्म हो जाता है। पंकज मोदी-शाह के खास बताए जाते हैं और शायद यही उनके और सीएम योगी के बीच खराब संबंध की बुनियाद भी बन सकता है। इसका उदाहरण प्रदेश के मंत्री एके शर्मा हैं। जिस प्रकार उनके आने के बाद खबरें उठी थीं कि उनको कोई बड़ा काम मिलेगा। लोगों ने उन्हें नया सीएम तक घोषित कर दिया था। पर योगी आदित्यनाथ ने उनका क्या हाल किया, ये सबके सामने है।

वैसे पंकज चौधरी सात बार के सांसद हैं। वर्ष 2027 में होने वाले के विधान सभा चुनाव के दृष्टिगत भाजपा ने प्रदेश की राजनीति में बड़ा सोचा-समझा कदम उठाते हुए पीडीए फार्मूले की काट के लिए कुर्मी कार्ड खेल दिया है। पिछड़ों में यादवों के बाद दूसरा सबसे बड़ा वर्ग कूर्मि है। बीते आम चुनाव में कुर्मियों के पार्टी के दूर हो जाने को देखते हुए पार्टी का यह निर्णय महत्वपूर्ण है। और इस बदलाव से यूपी की 50 सीटों पर भाजपा को फायदा मिलने की उम्मीद है। पंकज चौधरी के निर्वाचन के लिए प्रस्तावकों में ठाकुर, ब्राह्मण, पासी, भूमिहार, दलित और ओबीसी समाज के नेताओं को शामिल कर भाजपा ने सामाजिक समरसता का भी संदेश देने की कोशिश की। प्रस्तावकों में खुद मुख्यमंत्री योगी, दोनों डिप्टी सीएम केशव मौर्य और ब्रजेश पाठक, पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह, कारागार मंत्री दारा सिंह चौहान, नगर विकास मंत्री एके शर्मा, सांसद कमलेश पासवान के अलावा समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण भी शामिल रहे।

सूत्र बताते हैं कि योगी बिल्कुल नहीं चाहते थे कि गोरखपुर क्षेत्र में सत्ता का कोई और केंद्र बने। इसी कारण कभी गोरक्षपीठ के खास रहे राज्यसभा सांसद राधामोहन दास अग्रवाल भी अब उनके खास नहीं हैं। गोरखपुर से विधायक रहे और अब हिमाचल के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल भी योगी के चलते ही गोरखपुर से लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ पाए और राज्यसभा के रास्ते संसद जाना पड़ा। हालांकि मोदी की कृपा से केंद्र में मंत्री बने। इसमें एक नाम उपेंद्र शुक्ल का भी है। चर्चा है कि योगी के नहीं चाहने की वजह से वे भाजपा की अजेय मानी जाने वाली गोरखपुर सीट से सांसद का चुनाव हार गए थे। ये तब की बात है जब योगी मुख्यमंत्री बने तो उनकी खाली सीट पर उपचुनाव हुआ था।


खैर, पंकज चौधरी महाराजगंज लोकसभा सीट से सात बार सांसद चुने जा चुके हैं। ये तब भी चुने गए जब देश में भाजपा चुनाव हार गई थी, और यूपीए सरकार बनी थी। कुर्मी समुदाय से आने वाले पंकज चौधरी का परिवार भी राजनीति से जुड़ा रहा है। उनकी मां उज्ज्वला चौधरी जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं।

सूत्रों के अनुसार उनके लंबे राजनीतिक सफर को देखते हुए पंकज चौधरी का निर्विरोध चयन भाजपा की रणनीतिक मजबूती की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। वैसे उनके आलोचक कहते हैं पंकज चौधरी को संगठन चलाने का अनुभव नहीं है। यह भी कहा जाता है कि अपने जिले के बाहर वे राजनीति में कोई बड़ा नाम भी नहीं हैं। ऐसे में शायद उन्हें केंद्र के रबर स्टाम्प के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। और इसी बहाने योगी आदित्यनाथ को यह मैसेज भी है कि प्रदेश संगठन पर केंद्रीय नेतृत्व का दबदबा बना रहेगा। और यहीं से पावर गेम शुरू होने का खतरा है।

इसमें एक और बात उल्लेखनीय है। 30 मई 2024 को एक सभा के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि आप पंकज चौधरी को सांसद बनाइए, हम इनको बड़ा आदमी बनाएंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि ये बहुत अनुभवी सांसद हैं और इनके अनुभव का लाभ पार्टी और सरकार को मिलना ही चाहिए। ऐसे में योगी और पंकज में कितना अच्छा संबंध होगा, यह देखने वाली बात होगी। क्योंकि योगी केंद्र का दखल नहीं चाहते हैं और करते वही हैं, जो वे चाहते हैं।

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