राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क औरैया। विकासखंड भाग्यनगर के ग्राम झपनी का पुरवा पीपरपुर मे चल रही सात दिवसीय कथा के पांचवे दिन श्रद्धालुओं ने गोवर्धन पर्वत और श्री कृष्ण की बाल्य लीलाओं की कथा सुनाई।कथा वाचक मोहित कृष्ण महाराज जी ने श्री कृष्ण के बाल्य लीलाओं और गोवर्धन पूजा की कथा का प्रसंग सुनाया, जिससे वहां उपस्थित सभी भक्त कथा सुनकर भाव विभोर हो गए।भागवत कथा के पाँचवें दिन परीक्षित राजेश यादव फौजी पत्नी रीना यादव ने व्यास पीठ का पूजन अर्चन किया तथा कथा वाचक का अशोक यादव प्रधान ने फूल माला पहना कर सम्मान किया व्यास मोहित कृष्ण महाराज जी ने भगवान श्री कृष्ण की बाल्य लीलाओं और गोवर्धन पूजा की कथा का वर्णन विस्तार से किया।एक बार इंद्रदेव को अभिमान हो गया,तब लीलाधारी श्री कृष्ण ने एक लीला रची।एक दिन श्री कृष्ण ने देखा कि सभी ब्रजवासी तरह-तरह के पकवान बना रहे हैं पूजा का मंडप सजाया जा रहा है और सभी लोग प्रातःकाल से ही पूजन की समाग्री एकत्रित करने में व्यस्त हैं।तब श्री कृष्ण ने योशादा जी से पूछा,मईया आज सभी लोग किसके पूजन की तैयारी कर रहे हैं,इस पर मईया यशोदा ने कहा कि पुत्र सभी ब्रजवासी इंद्र देव के पूजन की तैयारी कर रहे हैं।तब कन्हैया ने कहा कि सभी लोग इंद्रदेव की पूजा क्यों कर रहे हैं, तो माता यशोदा उन्हें बताते हुए कहती हैं,क्योंकि इंद्रदेव वर्षा करते हैं और जिससे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारी गायों को चारा प्राप्त होता है।तब श्री कृष्ण ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। यदि पूजा करनी है तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं और हमें फल-फूल, अनाज,सब्जियां आदि भी गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होती हैं। इसके बाद सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे।इस बात को देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर प्रलयदायक मूसलाधार बारिश शुरू कर दी।जिससे हर ओर त्राहि-त्राहि होने लगी।सभी अपने परिवार और पशुओं को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। तब ब्रजवासी कहने लगे कि यह सब कृष्णा की बात मानने का कारण हुआ है, अब हमें इंद्रदेव का कोप सहना पड़ेगा।भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अंहकार दूर करने और सभी ब्रजवासियों की रक्षा करने हेतु गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया। तब सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली।इसके बाद इंद्रदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा याचना की।इसी के बाद से गोवर्धन पर्वत के पूजन की परंपरा आरंभ हुई।

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