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“UP BJP को नया प्रदेश अध्यक्ष मिल गया है। केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी बने अध्यक्ष। कुर्मी कार्ड, योगी संतुलन और 2027 चुनाव की पूरी इनसाइड स्टोरी पढ़ें।”

लखनऊ। उत्तर प्रदेश भाजपा के संगठनात्मक इतिहास में यह फैसला केवल एक नेतृत्व परिवर्तन नहीं, बल्कि आने वाले पांच वर्षों की चुनावी राजनीति की आधारशिला है। करीब 11 महीने की लंबी प्रतीक्षा, कई राज्यों के चुनाव, संघ–सरकार–संगठन के बीच गहन विचार-विमर्श और सामाजिक समीकरणों की बारीक गणना के बाद केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी को यूपी भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है।

यह ताजपोशी सीधे-सीधे यह बताती है कि भाजपा अब 2027 के विधानसभा चुनाव को केंद्र में रखकर संगठन को नए सिरे से गढ़ने जा रही है।

11 महीने की देरी: क्यों अटका था फैसला

भाजपा नेतृत्व जनवरी 2025 तक नया प्रदेश अध्यक्ष घोषित करना चाहता था, लेकिन राजनीतिक परिस्थितियां लगातार बदलती रहीं।

  • मिल्कीपुर उपचुनाव
  • महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनाव
  • बिहार चुनाव में एनडीए की निर्णायक लड़ाई

इन सबके चलते यूपी संगठन में बड़ा फैसला टलता रहा। बिहार चुनाव में एनडीए की भारी जीत के बाद जैसे ही केंद्रीय नेतृत्व को फुर्सत मिली, सबसे पहले यूपी भाजपा अध्यक्ष पद पर अंतिम मुहर लगाने की प्रक्रिया शुरू हुई

2024 का संदेश: कुर्मी वोट का छिटकना

2024 के लोकसभा चुनाव ने भाजपा को स्पष्ट चेतावनी दी।

  • कुर्मी समाज का बड़ा हिस्सा सपा–कांग्रेस गठबंधन के साथ गया
  • धौरहरा, सीतापुर जैसी परंपरागत सीटों पर हार
  • कटहरी उपचुनाव में जीत के लिए संगठन और सरकार दोनों को पूरी ताकत लगानी पड़ी

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यूपी में कुर्मी समाज करीब 10 प्रतिशत आबादी के साथ लगभग 180 विधानसभा और 32 लोकसभा क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाता है। यही वजह रही कि भाजपा नेतृत्व ने कुर्मी नेतृत्व को संगठन की सर्वोच्च कमान सौंपने का मन बनाया।

स्वतंत्र देव सिंह बनाम पंकज चौधरी

कुर्मी समाज से सबसे मजबूत नाम जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह का था।

  • संघ और योगी समर्थक खेमे की खुली पैरवी
  • संगठन में मजबूत पकड़

लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के सामने बड़ा सवाल था—

“क्या सरकार और संगठन एक ही खेमे में रहें?”

सीएम योगी के बेहद करीबी होने के कारण स्वतंत्र देव सिंह के नाम पर सहमति नहीं बन सकी। पार्टी नेतृत्व चाहता था कि सरकार और संगठन में शक्ति-संतुलन बना रहे। इसी बिंदु पर पंकज चौधरी का नाम निर्णायक साबित हुआ।

क्यों पंकज चौधरी पर बनी सर्वसम्मति

पंकज चौधरी को लेकर पार्टी के भीतर शायद ही किसी ने आपत्ति की।

उनकी ताकतें

  • 36 साल का सक्रिय राजनीतिक अनुभव
  • 7 बार लोकसभा सांसद
  • पूर्वांचल में मजबूत जनाधार
  • संघ के साथ सहज संबंध
  • दिल्ली नेतृत्व और पीएम मोदी का भरोसा

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के शब्दों में,

“पंकज चौधरी ऐसा नाम थे, जिस पर किसी गुट को असहजता नहीं हुई।”

पीएम मोदी से संघ तक: कैसे तय हुआ नाम

सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंकज चौधरी को संकेत दिए और उन्हें अमित शाह से मुलाकात के लिए कहा।
इसके बाद—

  • रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह
  • राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा
  • राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष

इन सभी से चर्चा हुई। अंततः संघ की सहमति के साथ नाम तय कर दिया गया। बीएल संतोष खुद लखनऊ पहुंचे और सीएम योगी को औपचारिक सूचना दी।

गोरखपुर बना सत्ता और संगठन का केंद्र

यह भाजपा के इतिहास में विरल संयोग है कि—

  • मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
  • प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी
  • राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. राधामोहन दास अग्रवाल

तीनों का राजनीतिक आधार गोरखपुर है। इससे यह साफ है कि आने वाले वर्षों में पूर्वांचल भाजपा की रणनीति का केंद्र रहेगा।

लोध, मौर्य और अन्य दावेदार क्यों पीछे रहे

  • लोध समाज में बीएल वर्मा और धर्मपाल सिंह पर एकमत नहीं
  • मौर्य समाज से पहले ही डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य हैं
  • नेतृत्व का आकलन: “इन वर्गों का वोट पहले से भाजपा के साथ है”

इसलिए नेतृत्व ने नए सिरे से कुर्मी समाज को साधने का फैसला किया।

पंकज चौधरी के सामने चुनौतियों का पहाड़

प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पंकज चौधरी के सामने कई मोर्चे हैं—

  1. सीएम योगी के साथ संतुलित समन्वय
  2. 2024 के बाद कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करना
  3. पंचायत और निकाय चुनाव में संगठन को धार देना
  4. 2027 में भाजपा की पूर्ण बहुमत वापसी
  5. PDA राजनीति के मुकाबले ओबीसी वर्ग को भाजपा के साथ जोड़ना
  6. प्रदेश, क्षेत्र और जिला स्तर पर नई टीम का गठन

पंकज चौधरी की ताजपोशी भाजपा की सोची-समझी सामाजिक और राजनीतिक रणनीति का परिणाम है। यह फैसला साफ करता है कि भाजपा 2027 को हल्के में नहीं ले रही। अब देखना यह है कि क्या पंकज चौधरी अपने अनुभव और संगठनात्मक संतुलन से कुर्मी समाज को फिर भाजपा की ओर मोड़ पाते हैं और क्या योगी सरकार के साथ मिलकर संगठन को नई धार दे पाते हैं।

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