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मुलायम सिंह जयंती — उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक यात्रा, संघर्ष, समाजवादी विचारधारा, उपलब्धियां, विवाद और विरासत ।1984 में मैनपुरी हमले के दौरान मुलायम सिंह यादव ने अपनी जान बचाने के लिए खुद की मौत की झूठी घोषणा करवाई थी। राजनीति, सत्ता हस्तांतरण और सिद्धांतों पर अडिग रहने से जुड़ी अनसुनी बातें इस जयंती विशेष रिपोर्ट में पढ़ें।

मुलायम सिंह जयंती: जनता के नेता से नेताजी तक — संघर्ष, सत्ता और विरासत की पूरी कहानी

आज उत्तर भारत की राजनीति का सबसे बड़ा समाजवादी चेहरा कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव की जयंती मनाई जा रही है। “जनता के नेता” और “नेताजी” के नाम से पहचाने जाने वाले मुलायम सिंह यादव ऐसे राजनेता थे जिन्होंने राजनीति को जातिगत, सामाजिक और ग्रामीण वर्ग के नए समीकरणों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर परिभाषित किया।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 को इटावा जिले के सैफई गाँव में एक किसान परिवार में हुआ। बचपन से ही उनके भीतर सामाजिक न्याय और समानता की सोच विकसित हुई।
स्कूल के दिनों में ही उन्होंने wrestling (कुश्ती) में राष्ट्रीय स्तर तक मुकाबले किए। खेल के प्रशिक्षण ने उनमें सख़्त अनुशासन और स्टैमिना पैदा किया, जिसका प्रभाव आगे उनकी राजनीति पर साफ दिखा।

राजनीति में आगमन

1967 में पहली बार जसराना विधानसभा सीट से विधायक चुने गए और यहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा शुरू हुई।
उनकी शैली — जमीनी संपर्क, संघर्ष, दृढ़ता और चौखट तक पहुंचने वाली राजनीति — ने उन्हें जल्दी ही जनता का नेता बना दिया।

प्रमुख राजनीतिक उपलब्धियां

वर्षपद और उपलब्धि
1989पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
1993दूसरी बार मुख्यमंत्री
2003तीसरी बार मुख्यमंत्री
1996भारत के रक्षामंत्री
1992समाजवादी पार्टी की स्थापना

मुलायम सिंह यादव को सोशल इंजीनियरिंग का जनक भी कहा जाता है। उन्होंने पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों, किसानों और वंचित वर्ग को राजनीतिक मुख्यधारा में लाकर सत्ता का चरित्र बदल दिया।

विचारधारा

मुलायम सिंह हमेशा “किसान और गरीब केंद्रित राजनीति” के पक्षधर रहे।
उनकी विचारधारा तीन आधारों पर टिकती थी:
🔹 समाजवाद
🔹 सेक्युलरिज़्म
🔹 सामाजिक न्याय

विवाद जिन्होंने उन्हें चर्चा में रखा

⚫ 1990 के बाद के दौर में अयोध्या आंदोलन की राजनीतिक स्थिति
⚫ यूपी की सत्ता में जातीय समीकरणों की स्थापना
⚫ तीसरे मोर्चे की राजनीति

विवादों के बावजूद मुलायम सिंह यादव जनता के बीच लोकप्रियता, सरलता और उपलब्धता की वजह से हमेशा स्वीकार्य रहे।

समाजवादी विचारधारा और उत्तर प्रदेश की राजनीति में केंद्रीय भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की जयंती के अवसर पर उनसे जुड़े एक ऐसे प्रकरण की चर्चा फिर तेज हो गई है, जिसने भारतीय राजनीतिक इतिहास में अनोखी जगह बनाई। वर्ष 1984 में मैनपुरी में हुए जानलेवा हमले के दौरान मुलायम सिंह यादव ने असाधारण सूझ-बूझ दिखाते हुए अपनी ही मौत की झूठी घोषणा करवा कर अपनी जान बचाई थी।

1984 का हमला — गोलियों की बौछार के बीच सूझ-बूझ ने बचाई जान

4 मार्च 1984 को मैनपुरी में एक राजनीतिक कार्यक्रम के बाद लौटते समय मुलायम सिंह यादव की गाड़ी पर अचानक गोलियों की ताबड़तोड़ बौछार हुई।
हमलावर कोई अपरिचित गिरोह नहीं, बल्कि किशनपाल और नेत्रपाल नामक दो परिचित थे। हमला बेहद नज़दीक से किया गया और परिस्थितियाँ नियंत्रण के बाहर दिखने लगीं।

हमले के दौरान मुलायम सिंह यादव ने अपने साथ मौजूद कार्यकर्ताओं से कहा—
“चिल्लाओ कि नेताजी नहीं रहे।”

कार्यकर्ताओं द्वारा “नेताजी मर गए” चिल्लाने पर हमलावरों को लगा कि गोलीबारी सफल हो गई है और गोली चलाना बंद कर दिया। कुछ क्षण बाद पुलिस पहुँची और मुलायम सिंह यादव सुरक्षित बाहर निकाले गए। यह घटना आज भी देश की राजनीति का सबसे चौंकाने वाला और रणनीतिक क्षण मानी जाती है।

राजनीतिक जीवन में परिवार और सिद्धांत — दोनों प्राथमिकता

मुलायम सिंह यादव अपनी राजनीतिक सख़्ती, जमीन से जुड़ाव और पारिवारिक भावनाओं के संतुलन के लिए भी जाने जाते थे।
अखिलेश यादव के राजनीतिक प्रवेश के समय उन्होंने उन्हें पहली बार विधानसभा में ले जाकर सलाह दी थी—

“कुर्सियाँ आदमी को बदल देती हैं। लेकिन तुम बदले तो जनता गिरा देगी। ईमानदार रहना — यही राजनीति है।”

यह मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक सोच का आधार माना जाता है।

सत्ता परिवर्तन का ऐतिहासिक निर्णय — 2012

2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को बहुमत मिला तो राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि मुलायम सिंह यादव चौथी बार मुख्यमंत्री बनेंगे।
लेकिन उन्होंने अप्रत्याशित निर्णय लेते हुए इस्तीफा घोषित किया और कहा—

“अखिलेश अब तैयार है, उसकी बारी है।”

राजनीतिक हलकों ने इसे भारतीय लोकतंत्र में सबसे अनुकरणीय सत्ता हस्तांतरणों में से एक माना।

सिद्धांतों पर दृढ़ता — 2016 के संकट के दौरान

2016 में पार्टी में आंतरिक संकट के दौरान लखनऊ में एक बैठक के दौरान, अखिलेश यादव के भावुक बयान के बीच मुलायम सिंह ने कहा—

“यहाँ मैं तुम्हारा पिता नहीं… पार्टी का अध्यक्ष हूँ।”

यह बयान मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक शैली — संगठन पहले, व्यक्ति बाद में — का स्पष्ट प्रतीक माना जाता है।

अंतिम सीख

अखिलेश यादव के अनुसार, अंतिम दिनों में मुलायम सिंह यादव ने उनसे कहा था—

“नेता मत बनना… लोगों का बेटा बनना। जब जनता को लगे कि तुम उनके घर का बच्चा हो, राजनीति अपने आप चलती रहती है।”

मुलायम सिंह यादव न केवल एक जननेता थे, बल्कि रणनीति, संगठन और सामाजिक समीकरणों के अद्वितीय संयोजन के लिए भी याद किए जाते हैं।
1984 का हमला, 2012 में सत्ता हस्तांतरण और राजनीतिक सिद्धांतों पर अटल रुख उनके व्यक्तित्व को विशिष्ट बनाता है।
जयंती के अवसर पर पूरा देश उन्हें संघर्ष, नेतृत्व और समाजवादी मूल्यों के प्रतीक रूप में स्मरण कर रहा है।

निधन और राजनीतिक विरासत

10 अक्टूबर 2022 को नेताजी का निधन हो गया।
आज भी भारत की राजनीति में उनके प्रभाव और समाजवादी राजनीति का मॉडल कायम है।
समाजवादी पार्टी में उनकी विरासत को अखिलेश यादव आगे बढ़ा रहे हैं

मुलायम सिंह यादव का जीवन बताता है कि —
“किसान का बेटा भी तीन बार मुख्यमंत्री और देश का रक्षामंत्री बन सकता है, यदि उसके भीतर संघर्ष की आग और जनता के लिए दिल हो।”

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विशेष संवाददाता — मनोज शुक्ल

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